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सप्ततिकाप्रकरण उदयस्थानमे १२ और ८८ ये दो दो सत्तास्थान होते हैं। २६ प्रकृतिक बन्धस्थान दो प्रकारका है-देवगतिप्रायोग्य और मनुष्यगतिप्रायोग्य । इनमेंसे देवगति प्रायोग्य तीर्थकर प्रकृति सहित है, अतः इसका बन्ध मनुष्य ही करते हैं । किन्तु मनुष्योके उदयम्थान सात हैं-२१, २५ २६, २७, २८, २६ और ३०, क्योंकि मनुष्योके ३१ प्रकृतिक उदयस्थान नहीं होता। यहाँ भी प्रत्येक उदयस्थानमे' ९३ और ८९ ये दो-दो सत्तास्थान होते हैं। तथा मनुष्य गतियोग्य २६ प्रकृतियोको देव और नारको बाँधते हैं। सो इनमेसे नारकियोके २१, २५, २७, २८ और २६ ये पाँच उदयस्थान होते हैं। तथा देवोके पूर्वोक्त पाँच और ३० ये छह उदयस्थान होते हैं। सो इन सव उदयस्थानोमे ६२ और ८८ ये दो दो सत्तास्थान होते हैं। तथा मनुष्यगतिके योग्य ३० को देव और नारकी बाँधते हैं । सो इनमें से देवोके पूर्वोक्त छह उदयस्थान होते हैं और उनमेसे प्रत्येकमें ६३ और ८६ ये दो दो सत्तास्थान होते हैं। नारकियोके उदयम्थान तो पूर्वोक्त पाँचों हो होते हैं किन्तु इनमे सत्तास्थान ८६ प्रकृतिक एक एक ही होना है, क्योकि तीर्थंकर और आहारक चतुष्क की युगपत् सत्तावाले जीव नारकियोंमें नहीं उत्पन्न होते । इस प्रकार २१ से लेकर ३० तक प्रत्येक उदयस्थानमे सामान्यसे ९३, ९२, ८६ और ८८ ये चार-चार सत्तास्थान होते हैं और ३१ प्रकृतिक उदयस्थानमे १२ और ८८ ये दो सत्तास्थान होते हैं। इस प्रकार अविरत सम्यग्दृष्टि गुणस्थानमे सामान्यसे कुल ३० सत्तास्थान हुए।