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गुणस्थानोमें नामकर्मके संवेध भग २७५ उदयस्थानके कुल मिला कर ३२ भग हुए । २४ प्रकृतिक उदयस्थान उन्हीं जीवोके होता है जो एकेन्द्रियोंमे उत्पन्न होते हैं। सो यहा इसके वादर और पर्याप्तकके साथ यशःकीर्ति और अयश. कीर्तिके विकल्पसे दो ही भग होते हैं, शेप भग नहीं होते, क्योंकि सूक्ष्म, साधारण अग्निकायिक और वायुकायिक जीवोंमें सास्वादन सम्यग्दृष्टि जीव नहीं उत्पन्न हाता । सास्वादनमें २५ प्रकृतिक उदयस्थान उसीके प्राप्त होता है जो देवोमें उत्पन्न होता है । सो इसके यहा स्थिर-अस्थिर, शुभ अशुभ ओर यश.कोर्ति-अयश कौतिके विकल्पसे ८ भग होते है। २६ प्रकृतिक उदयस्थान उन्हींके होता है जो विललेन्द्रिय, तिर्यंचपचेन्द्रिय और मनुष्योमें उत्पन्न होते हैं। इस स्थानमें अपर्याप्तकके साथ जो एक एक भग पाया जाता है वह यहाँसम्भव नहीं है, क्योंकि अपर्याप्तकोंमे सास्वादन सम्यग्दृष्टि जोव नहीं उत्पन्न होते । किन्तु शेप भग सम्भव है । जो विकलेन्द्रियोके दो, दोइस प्रकार छह, तिर्यंचपचेन्द्रियोके २८८ ओर मनुष्योके २८ होते हैं। इस प्रकार यहा २६ प्रकृतिक उदयस्थानमें कुल मिलाकर ५८२ भाग होते हैं । यहा २७ ओर २८ प्रकृतिक उदयस्थान सम्भव नहीं है, क्यो कि वे नवीन भव ग्रहणके एक अन्तर्मुहूर्त कालके जाने पर हाते हैं। किन्तु सास्वादनभाव उत्पविके बाद अधिकसे अधिक कुछ कम ६ श्रावलिकाल तक ही प्राप्त होता है। अत उक्त दोनो स्थान सास्वादनसम्यग्दृष्टिके नहीं होते यह सिद्ध हुआ। २६ प्रकृतिक उदयस्थान प्रथम सम्यक्त्वसे च्युत होनेवाले पर्याप्तक स्वस्थानगत देव और नारकियोंके प्राप्त होता है। २६ प्रकृतिक