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. ..सप्ततिकाप्रकरण . . उदयस्थानमे देवोंके ८ और नारकियोके १ इस प्रकार इसके यहां कुल भंग होते हैं। सास्वादनमें ३० प्रकृतिक उदयस्थान प्रथम सम्यक्त्वसे च्युत होनेवाले पर्याप्तक तिथंच और मनुष्योके या उत्तर विक्रियामें विद्यमान देवोंके होता है। ३. प्रकृतिक उदयस्थानमे तिर्यंच और मनुष्योमेंसे प्रत्येकके १५२ और देवोंके ८ इस प्रकार कुल २३१२ भंग होते हैं। तथा ३१ प्रकृतिक उदयस्थान प्रथम सम्यक्त्वसे च्युत होनेवाले पर्याप्तक तिर्यंचोके होता है। यहां इसके कुल भंग ११५२ होते हैं । इस प्रकार सास्वादन में ७ उदयस्थान होते हैं । अन्तर्भाष्य गाथामें भी इनके भंग निम्न प्रकारसे गिनाये है
'बत्तीस दोन्नि अट्ठ य वासीस सया य पंच नव उदया। बारहिगा तेवीसा वावन्नेक्कारस सया य ॥'
अर्थात्-'सास्वादनमें २१, २४, २५, २६, २९, ३० और ३१ इन उदयस्थानोके क्रमसे ३२, २, ८, ५८२, ९, २३१२ और ११५२ भंग होते हैं।'
तथा सास्वादनमे दो सत्तास्थान होते हैं- ६२ और ८८ । इनमें से जो आहारक चतुष्कका बन्ध करके उपशमश्रेणीसे च्युत होकर सास्वादन भावको प्राप्त होता है उसके ६२ की सत्ता पाई जाती है अन्यके नहीं। ८ की सत्ता चारो गतियोके सास्वादन जीवोके पाई जाती है। इस प्रकार सास्वादनमे वन्ध. उदय और सत्त्वस्थानोंका विवेचन समाप्त हुआ। .अव इनके संवेधका , विचार करते हैं-२८ प्रकृतियोका बन्ध