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सप्ततिकाप्रकरण उदयस्थानमे भी इसी प्रकार ५ सत्त्वस्थान जानना चाहिये। ३० प्रकृतिक उदयस्थानमे ९२, ८८, ८६ और ८० ये ४ सत्त्वस्थान होते हैं। सो ये चारो ही विकलेन्द्रिय तिर्यंच पंचेन्द्रिय और मनुष्योकी अपेक्षा जानना चाहिये। नारकियोंके ३० प्रकृतिक उदयस्थान नहीं होता अतः यहाँ ८९ प्रकृतिक सत्त्वस्थान नहीं कहा । तथा ३१ प्रकृतिक उदयस्थानमे भी ये ही चार सत्त्वस्थान होते हैं जो विकलेन्द्रिय और तिर्यंच पंचेन्द्रियोकी अपेक्षा जानना चाहिये। इस प्रकार २६ प्रकृतियोंका बन्ध करनेवाले मिथ्यादृष्टि जीवके ४५ सत्त्वस्थान होते हैं। तथा मनुष्य और देवगतिके योग्य ३० प्रकृतिक बन्धस्थानको छोड़कर शेष विक. लेन्द्रिय और तिर्यंच पचेन्द्रियके योग्य ३० प्रकृतियोंका बन्ध करनेवाले मिथ्यादृष्टि जीवके सामान्यसे पूर्वोक्त ६ उदयस्थान
और ८९ को छोड़कर पाँच-पाँच सत्त्वस्थान होते हैं। यहाँ ८९ प्रकृतिक सत्त्वस्थान सम्भव नहीं क्योकि ८६ प्रकृतिक सत्त्व स्थानवाले जीवके तिर्यंचगतिके योग्य प्रकृतियोका बन्ध नहीं होता। यहाँ २१, २४, २५, २६ इन चार उदयस्थानोमे उन पाँचो सत्त्वस्थानोका कथन तो पहलेके समान करना चाहिये । अब शेष रहे २७, २८, २९, ३० और ३१ ये पाँच उदयस्थान सो इनमेंसे प्रत्येकमें ७के बिना शेष चार सत्त्वस्थान होते हैं। इस प्रकार ३० प्रकृतियोंका बन्ध करनेवाले मिथ्यारष्टि जीवके कुल ४० सत्त्वस्थान होते । इस प्रकार मिथ्यादृष्टि जीवके बन्ध, उदय और सत्ताका संवेघ समाप्त हुआ।