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गुणस्थानोंमें मोहनीयके सवेध भंग २६१ इस प्रकार यहाँ कुल सत्त्वस्थान १७ हुए। प्रमत्तविरत में ९ प्रकृतिक वन्धस्थान तथा ४, ५, ६और ७ ये चार उदयस्थान होते हैं। सो इनमेंसे ४ प्रकृतिक उदयस्थानमें २८, २४ और २१ ये तीन सत्त्वस्थान होते हैं। ५और ६ मेसे प्रत्येक उदयस्थानमे २८, २४ २३. २२ और २१ ये पाँच-पाँच सत्त्वस्थान होते हैं। तथा सात प्रकृतिक उदग्रस्थानमे २८, २१, २३ और २२ ये चार मत्त्वस्थान होते हैं। इस प्रकार यहाँ कुल १७ सत्त्वस्थान हए । अप्रमत्त सयतमे भी इसी प्रकार सत्रह सत्त्वस्थान होते हैं। अपूर्वकरणमें ९ प्रकृतिक वन्धस्थान और ४,५ तथा ६ इन तीन उदयस्थानोंके रहते हुए प्रत्येक में २८, २४ और २१ ये तोन-तीन सत्त्वस्थान होते हैं । इस प्रकार यहाँ कुल सत्वस्थान ६ हुए। अनिवृत्तिकरणमे ५ ४,३,२ और १ प्रकृतिक पाँच वन्धस्थान तथा २ और १ प्रकृतिक दो उदयस्थान हाते है सो इनमेंसे ५ प्रकृतिक वधस्थान
और २ प्रकृतिक उदयस्थानके रहते हुए २८, २४, २१, १३, १२ और ११ ये छह सत्त्वस्थान होते है। चार प्रकृतिक वन्धस्थान और एक प्रकृतिक उदयस्थानके रहते हुए २८, २४, २१, ११, ५ और ४ ये छह सत्त्वस्थान होते हैं। तीन प्रकृतिक वन्धस्थान और एक प्रकृतिक उदयस्थानके रहते हुए २८, २४ २१ ४ और ३ ये पाच सत्त्वस्थान होते है। २ प्रकृतिक वन्धस्थान और एक प्रकृतिक उदयम्यानके रहते हुए २८, २४, २१, ३ और २ ये पाँच सत्त्वस्थान होते हैं। एक प्रकृतिक वन्धस्थान और एक प्रकृतिक उदयस्थानके रहते हुए २८, २३, २१ २ और १ ये पाँच सत्वस्थान होते है। इस प्रकार यहाँ कुल २७ सत्त्वस्थान हुए। सूक्ष्मसम्परायमें बन्धके अभावमें एक प्रकृतिक उदयस्थानके रहते 'हुए २८, २४, २१ ओर १ ये चार सत्त्वस्थान होते हैं। तथा उपशान्त मोह. गुणस्थानमें बन्ध और उदयके विना २८, २४
सत्वस्थान रहते हुए २८, २०२७ सत्वस्थान
के रहते