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गुणस्थानोमें नामकर्मके बन्धादि स्थान
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अर्थात्–'मिथ्यादृष्टि जीवके २३ २५, २६, २८, २६ और ३० प्रकृतिक वन्त्रस्थानके क्रमसे ४,२५, १६, ६, ६२४० और ४६३२ भग होते हैं ।'
मिथ्यादृष्टि जीवके ३१ और १ प्रकृतिक बन्धस्थान सम्भव नहीं, त उनका यहाँ विचार नहीं किया ।
मिथ्यादृष्टि गुणस्थान में उदयस्थान ६ होते हैं । जो इस प्रकार हैं - २१, २४, २५, २६, २७, २८.२६. ३० और ३१ । इनका नाना जीवोकी अपेक्षा से पहले विस्तारसे वर्णन किया ही है उसी प्रकार यहाँ भी समझना । केवल यहाँ आहारकसयत, वैक्रियसयत और केवलीसम्बधी भग नहीं कहना चाहिये, क्योंकि ये मिथ्यादृष्टि जीवके नहीं होते है । मिथ्यादृष्टि गुणस्थानमे इन उदयस्थानोके भग क्रमश ४१, ११, ३२, ६००, ३१, ११६६, १७८१, २६१४ और १९६४ होते हैं । जिनका कुल जोड़ ७७७३ होता है। वैसे इन उदयस्थानोके कुल भग ७७६१ होते है जिनमें से केवली ८, आहारक साधुके ७ और उद्योत सहित वैक्रिय मनुष्यके ३ इन १८ भगोके कम कर देने पर ७७७३ भग प्राप्त होते हैं ।
तथा मिथ्यादृष्टि गुणस्थानमे ९२, ८६, ८८, ८६, ८० और ७८ ये छह सत्त्वस्थान होते हैं । मिथ्यात्वमे आहारक चतुष्क और तीर्थंकरकी एक साथ सत्ता नहीं होती, अत यहाँ ६३ प्रकृतिक सत्त्वस्थान नहीं कहा । ६२ प्रकृतिक सत्त्वस्थान चारो गतियोंके मिथ्यादृष्टि जीवके सम्भव है, क्योंकि आहारक चतुष्ककी सत्तावाला किसी भी गतिमें उत्पन्न होता है । मिथ्यात्वमें ८६ प्रकृतियोंकी सत्ता सबके नहीं होती किन्तु नरकायुका बन्ध करनेके पश्चात् वेद सम्यष्टि होकर जो तीर्थकर प्रकृतिका बन्ध करता है और जो अन्त समयमें मिथ्यात्वको प्राप्त होकर नरकमें जाता