________________
૨૪૮
सप्तर्तिकाप्रकरण है। प्रमत्तसंयत में योग १३ और पद ४४ हैं। किन्तु आहारकद्विक मे स्त्रीवेद का उदय नहीं होता इसलिये ११ योगों की अपेक्षा तो ११ को ४४ से गणित करके २४ से गुणित करे और आहारकद्विक की अपेक्षा २ से ४४ को गुणित करके १६ से गुणित करे। इस प्रकार क्रिया के करने पर प्रमत्तसंयतमें कुल पदवृन्द १३०२४ प्राप्त होते है। अप्रमत्त सयतमे योग ११ और पद ४४ हैं किन्तु आहारक काययोगमें स्त्रीवेदका उदय नहीं होता इसलिय १० योगोंकी अपेक्षा १० से ४४ को गणित करके २३ से गणित करे और आहारकाययोग की अपेक्षा ४४ से १६ को गुणित करे । इस प्रकार करने पर अनमत्त संयतमे कुल परवृन्द ११२६३ होते हैं। अपूर्वकरणमें योग : और पद २० होते हैं, अतः २० से ६ को गुणित करके २४ से गुणित करने पर यहाँ कुल पदवृन्द ४३२० प्राप्त होते हैं। अनिवृत्तिकरणमें योग ६ और भङ्ग २८ हैं। यहाँ योगपट नहीं हैं, अत पढ न कह कर भंग कहे हैं। सो से २८ को गुणित कर देने पर अनिवृत्तिकरणमें २५२ पदवृन्द होते हैं। तथा सूक्ष्मसम्परायमे योग है और भग १ हैं । अत ६ से १ को गुणित करने करने पर ६ भंग होते हैं । अव प्रत्येक गुणस्थानके इन पदवृन्दों को जोड़ देने पर सव पदवृन्दोंकी कुल संख्या ६५७१७ होती है । कहा भी है
'सत्तरसा सत्तसया पणनउइमहस्स पयसंखा।'
. अर्थात्-'योगोंकी अपेक्षा मोहनीयके सव पदवृन्द पचाननवे हजार सातसौ सत्रह होते हैं।'
(३) पन्च० सप्त० गा० १२० ।