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सप्ततिकाप्रकरण स्थानमे. पदवृन्द और योगोकी संख्या कितनी है और दूसरी यह कि उन योगोंमें से किस योगमें कितने पदवृन्द सम्भव हैं। आगे इसी व्यवस्थाके अनुसार प्रत्येक गुणस्थानमें कितने पदवृन्द प्राप्त होते हैं यह बतलाते हैं। मिथ्यात्वमे ४ उदयस्थान और उनके कुल पढ ६८ हैं यह तोहम पहले ही वतला आये हैं। सो इनमेंसे एक ७ प्रकृतिक उदयस्थान, दो आठ प्रकृतिक उदयस्थान और एक नौ प्रकृतिक उदयस्थान अनन्तानुवन्धीके उदयसे रहित हैं जिनके कुल उदयपद ३२ होते हैं और एक आठ प्रकृतिक उदयस्थान, दो प्रकृतिक उदयस्थान और एक १० प्रकृतिक उदयस्थान ये चार उदयस्थान अनंतानुबंधीके उदयसे सहित हैं जिनके कुल उदयपद ६३ होते हैं। इनमेसे पहले के ३२ उदयपद ४ मनोयोग, ४ वचनयोग, औदारिक काययोग और वैनिकाय योग इन दस योगोके साथ पाये जाते है. क्योंकि यहाँ अन्य योग सम्भव नहीं, अत इन्हें १० से गुणित कर देने पर ३२० होते हैं। और ३६ उदयपद पूर्वोक्त दस तथा बौदारिक मिश्र, वैवियमित्र और कारण इन १३ योगोके साथ पाये जाते हैं, क्योंकि ये पद पर्याप्त और अपर्याप्त दोनो अवस्थाओमें सम्भव है अत' ३६ को १३ से गणित क्र देने पर ४६८ प्राप्त होते हैं। चूं कि हमें मिथ्यात्व गुणस्थानके कुल पटवृन्द प्राप्त करना है अतः इनको इक्छा कर दें और २४ से गणित कर दें तो मिथ्यात्व गुणस्थानके कुल पदवृन्द आ जाते हैं जो ३२०+४८८=vzx २४= ८८१२ होते हैं। सास्वादनमे योग १३ और उदयपद ३२ हैं। सो १२ योगोंमें तो ये सव उदयपद सम्भव है किन्तु सारवा. दनके वैवियमिश्रमें नपुंसक्वेदका उदय नहीं होता, अतः यहाँ पुंसक्वेद के भग क्म कर देना चाहिये । तात्पर्य यह है कि