________________
२५०
सप्ततिकाप्रकरण अव उपयोगोंकी अपेक्षा उदयस्थानोका विचार करते हैंमिथ्यादृष्टि और सास्वादनमे मत्यज्ञान, श्रुताज्ञान, विभंगज्ञान, चक्षुदर्शन,और अचक्षुदर्शन ये पांच उपयोग होते हैं। मिश्रमे तीन मिश्र ज्ञान तथा चक्षु और अचक्षुदर्शन इस प्रकार ये पाच उपयोग होते हैं। किन्तु अविरतसम्यग्दृष्टि और देशविरत इनमें प्रारम्भके तीन सम्यग्ज्ञान और तीन दर्शन ये छह उपयोग होते है । तथा प्रमत्तसे लेकर सूक्ष्मसम्पराय तक पॉच गुणस्थानोमे मन पर्ययज्ञान सहित सात उपयोग होते हैं। यह तो हुई गुणस्थानोमें उपयोग व्यवस्था । अब किस गुणस्थानमें कितने उदयस्थान भंग होते हैं यह जानना शेप है सो इसका कथन पहले पृष्ठांकमे कर ही आये हैं अत. वहॉसे जानलेना चाहिये । इस प्रकार जिस गणस्थानमे जितने उपयोग हों उनसे उस गुणस्थानके उदयस्थानोको गुणित करके अनन्तर भंगोसे गुणित कर देने पर उपयोगोकी अपेक्षा उस उस गुणस्थानके कुल भग आ जाते हैं। यथा-मिथ्यात्व और सास्वादनमें क्रमसे ८और ४ चौवीसी तथा ५ उपयोग हैं अत ८+४ = १२ को ५से. गुणित कर देने पर ६० हुए । मिश्रमे ४ चौबीसी और ५ उपयोग हैं, अतः४ को ५ से गुणित कर देने पर २० हुए । अविरत सम्यरदृष्टि और देशविरतमे आठ आठ चौवीसी और ६ उपयोग हैं, अतः ८+८=१६ को छहसे गुणित कर देने पर ९६ हुए । प्रमत्त, अप्रमत्त
और अपूर्वकरणमें आठ, आठ और ४ चौबीसी और ७ उपयोग हैं अतः ८++४-२० को सातसे गुणित कर देने पर १४०