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योगोंमें भंगविचार
२४३ इसलिये ११ योगोमें तो भगोंकी ८ चौवीसी प्राप्त होती हैं किन्तु आहारक और आहाकमिश्रकाययोगमे भगोके कुल ८ षोडशक ही प्राप्त हाते हैं। इस प्रकार यहाँ कुज्ञ भग २३६८ होते हैं। अप्रमत्तसंयतमें ४ मनोयोग, ४ वचनयोग, औदारिक काययोग, वैक्रियकाययोग ओर आहारकाययोग ये ११ योग और भगोकी ८ चावीसी हाती हैं । किन्तु आहारक काययोगमें स्त्रीवेद नहीं है, अत यहाँ १० योगों में भगोकी ८ चौबीसी ओर आहारककाययोगमे ८ पोडशक प्राप्त हाते है। इस प्रकार यहा कुल भग २०४८ होते हैं। जो जाव प्रमत्तलयत गणस्थानमे वैक्रियकाययोग और आहारक काययोगको प्राप्त करके अप्रमत्तसयत हो जाता है उसके अनमत्तसयत अवस्थाके रहते हुए ये दा याग हाते हैं। वैसे अत्रमत्तलयत जीव वैक्रिय ओर आहारक समुद्धातका प्रारम्भ नहीं करता, अन इस गुणस्थानमें वोक्रय मिश्रकाययाग और आहारक मिश्रकाययोग नहा कहा। अपूर्वकरण गुणस्थानमें योग और ४ चोवासो हाता है, अन यहाँ कुन भाग ८.४ हाते हैं । अनिवृत्तिकरण गुणस्थानमें योग : ओर भग १६ होते हैं, अन (६ से ६ के गुणित करने पर यहा कुल १४४ भग प्राप्त होते हैं। तथा सूदन सन्दराय गुणस्थानमें याग ६ ओर भाग १ है। अा यहाँ कुल भग प्राप्त होते हैं। अब यदि उपर्युक्त दसों गुणस्थानोके कुल भग जोड दिये जाते हैं तो उनका कुल प्रमाण १४१६६ हाता है। कहा भी है
चंउदस य सहस्साइ सयं च गुणहत्तर उदयमाण ।'
अर्थात्- योगोफी अपेक्षा माहनीयके कुल उदय विकल्पोका प्रमाण १४१६६ होता है।'
(५)पच स० सप्त. गा० १२० ।