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सप्ततिकाप्रकरण भगोकी आठ चौबीसी प्राप्त होती हैं। यहाँ भी चार चौबीसी उपशमसम्यग्दृष्टि और क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीवोके तथा चार चौबीसी वेदकसम्यग्दृष्टि जीवोके होती हैं।
चत्तारिमाइ नवबंधगेसु उक्कोस सत्त उदयंसा । पंचविहवंधगे पुण उदो दोएहं मुणेयव्यो॥१६॥
अर्थ-नौ प्रकृतियो का वन्ध करनेवाले जीवोंके चार प्रकतिक उदयस्थानसे लेकर अधिकसे अधिक सात प्रकृतिक उदयस्थान तक चार उदयस्थान होते है। तथा पॉच प्रकृतियोका बन्ध करने वाले जीवोके उदय दो प्रकृतियो का ही होता है। ऐसा जानना चाहिये।
विशेपार्थ-इस गाथामें यह बतलाया है कि नौ प्रकृतिक और पाँच प्रकृतिक बन्धस्थानके रहते हुए उदयस्थान कितने होते हैं। आगे इसीका खुलासा करते हैं-नौ प्रकृतिक वन्धस्थानके रहते हुए चार प्रकृतिक, पाँच प्रकृतिक, छ प्रकृतिक और सात प्रकृतिक ये चार उदयस्थान होते हैं। पहले पाँचवे गुणस्थानमे जो पाँच प्रकृतिक उदयस्थान वतला आये हैं उसमे से प्रत्याख्यानावरण कपायके एक भेदके कम कर देने पर यहाँ चार प्रकृतिक उदयस्थान प्राप्त होता है जिसमे पूर्वोक्त प्रकारसे भंगोकी एक चौवीसी होती है। इसमें भय, जुगुप्सा या सम्यक्त्व मोहनीय इन तीन प्रकृतियोमेंसे किसी एक प्रकृतिके क्रमसे मिलाने पर पाँच प्रकृतिक उदयस्थान तीन प्रकारसे प्राप्त होता है। यहाँ एक एक भेदमे भंगोकी एक एक चौवीसी प्राप्त होती है, अतः पाँच प्रकृतिक उदयस्थानमे भंगोकी कुल तीन चौबीसी प्राप्त हुई । फिर चार प्रकृतिक उदयस्थांनमें भय और जुगुप्सा, भय और सम्यक्त्व मोहनीय या जुगुप्सा और सम्यक्त्वमोहनीय इन दो