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सप्ततिकाप्रकरणस्थितिगत दलिकको और दो समय कम दो आवलि प्रमाण समय प्रबद्धको छोड़कर अन्य सबका क्षय हो जाता है । यद्यपि यह भी दो समय कम दो आवलि प्रमाण कालके द्वारा क्षयको प्राप्त होगा किन्तु जव तक क्षय नहीं हुआ है तब तक तीन प्रकृतिक बन्धस्थानमे चार प्रकृतिक सत्त्व पाया जाता है। और इसके क्षयको प्राप्त हो जाने पर तीन प्रकृतिक बन्धस्थानमें तीन प्रकृतिक सत्त्व प्राप्त होता है जो अन्तमुहूर्त काल तक रहता है। इस प्रकार तीन प्रकृतिक बन्धस्थानमें २८, २४, २१, ४ और ३ ये पाँच सत्त्वस्थान होते है यह सिद्ध हुआ। इसी प्रकार संज्वलन मानकी प्रथम स्थिति एक आवलि प्रमाण शेष रहने पर बन्ध, उदय
और उदीरणा इन तीनोकी एक साथ व्युच्छित्ति हो जाती है और उस समयके बाद दो प्रकृतिक बन्ध होता है। पर उस समय संज्वलन मानके एक प्रावलि प्रमाण प्रथम स्थितिगत दलिकको
और दो समय कम दो श्रावलि प्रमाण समयप्रबद्धको छोड़कर अन्य सबका क्षय हो जाता है। यद्यपि यह शेप सत्कर्म भी दो समय कम दो आवलि प्रमाण कालके द्वारा क्षयको प्राप्त होगा किन्तु जब तक इसका क्षय नहीं हुआ है तब तक दो प्रकृतिक बन्धस्थानमें तीन प्रकृतिक सत्त्व पाया जाता है। पश्चात् इसके क्षयको प्राप्त हो जाने पर दो प्रकृतिक बन्धस्थानमे दो प्रकृतिक सत्त्वस्थान होता है जो अन्तर्मुहूर्त काल तक रहता है। इस प्रकार दो प्रकृतिक बन्धस्थानमें २८, २४, २१.३ और २ ये पाँच सत्त्वस्थान होते हैं। इसी प्रकार संज्वलन मायाकी प्रथम स्थिति एक आव