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नामकर्मके बन्धस्थान
१२३ सूचना-जिन आचार्यों का मत है कि चार प्रकृतिक बन्धस्थानमें दो और एक प्रकृतिक उदयस्थान होता है, उनके मतसे १२ उदयपट और २४ पटवृन्द बढ़कर उनकी संख्या क्रमः ९९५ और ६९७१ प्राप्त होती है।
अब इस सब कथन का उपसहार करके नाम कर्मके कहने की प्रतित्रा करते है
दसनवपन्नरसाई बंधोदयसन्तपयडिठाणाई । भणियाइँ मोहणिजे इत्तो नाम परं बोच्छं ॥ २३ ॥
अर्थ-मोहनीय कर्मके वन्ध, उदय और सत्त्वस्थान क्रमसे दस नी और पन्द्रह कहे। अब आगे नामकर्म का कथन करते हैं।
विशेषार्थ-इम उपसंहार गाथाका यह अभिप्राय है कि यहाँ तक मोहनीय कर्मके दस वधस्थान, नौ उदयस्थान और पन्द्रह सत्वस्थानोंका, उनके मम्भव भगोका और वन्ध, उदय तथा सत्त्वस्थानके संवैध भंगोका कथन किया, अब नाम कर्ममें सम्भव इन सब विशेपताश्रीका कथन करते हैं।
१०. नामकर्म अव सबसे पहले नाम कर्मके बन्धस्थानोका कथन करते हैं
(१) 'दसणवपण्णरसाइ बंधोदयसत्तपयडिठाणाणि। भणिदाणि मोहणिजे एत्तो णाम पर वोच्छ ।'---गो० कर्म० गा० ५१८ ।