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सप्ततिकाप्रकरण । दोनों न्वरोके विकल्प से चार भंग प्राप्त होते हैं। किन्तु दूसरे प्रकारके ३० प्रकृतिक उदयम्यानमें यशाकीर्ति और अयशकीर्ति के विकल्पसे केवल दोन्ही भंग होते है। इस प्रकार ३० प्रकृतिक उन्यम्थानके कुल छह भंग हुए। अब यदि जिसने भाषा पर्याप्ति को भी प्राप्त कर लिया है और जिसके उद्योत का भी उदय है उसके ३१ प्रकृतिक उड्यन्यान होता है । सो यहां यश कीर्ति
और अयश कीति और दोनों न्वरोंके विकल्पमे बार भंग होते हैं। इस प्रकार पर्यातक दो इन्द्रियके सब उदयस्थानोंके कुल भंग २० होने हैं। तथा एकेन्द्रियोके समान इसके भी ९२, ८८, ८६, ८० और ७८ प्रकृतिक पांच सत्त्वस्थान होते हैं। पहले लो छह उदयस्थानों के २० भंग बनला आये हैं उनमें से २. प्रकृतिक उदयस्थानके दो भंग और २६ प्रकृतिक उदयम्यानके दो भंग इन चार भंगामें से प्रत्येक मंगमें पांच पांच सत्वन्यान होते हैं, क्योंकि ७८ प्रकृतियोंकी सत्तावाले जो अग्निकायिक और वायुकायिक जीव पर्याप्तक दो इन्द्रियोंमें उत्पन्न होते हैं उनके कुछ काल नक ७८ प्रकृतियोंकी सत्ता सम्भव है । तथा इस कालके भीतर द्वीन्द्रियों के क्रमशः २१ और २० प्रकृतिक उदयन्थान ही होते हैं, अत इन दो उदयस्थानोके चार भंगामें से प्रत्येक भंगमें उक्त पांच सत्त्वम्यान कहे । तथा इन चार भंगों के अतिरिक्त जो शेष १३ भंग रह जाते हैं उनमें से किसी में भी ७८ प्रकृनिक मत्वम्यान न होने से प्रत्येक में चार चार सत्त्वस्थान होते हैं म्योंकि अग्निकायिक और वायुकाविक जीवोंके सिवा शेष जीव शरीर पर्यानि से पर्याप्त होनेके पश्चात् नियमसे मनुष्यगति और मनुष्यगत्यानुपूर्वीका बन्ध करते हैं अतः उनके ७८ प्रकृतिक सत्वत्थान नहीं प्राप्त होता है। इसी प्रकार तेइन्द्रिय