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। सप्ततिकाप्रकरण. ५, ६, और ५ प्रकृतिक चार उदयस्थान होते हैं। यहां इनके . भंगोकी क्रमशः आठ चौबीसी प्राप्त होती हैं। अपूर्वकरण गुणस्थानमे ४, ५, और ६ प्रकृतिक तीन उदयस्थान होते हैं । यहाँ इनके भंगोकी चार चौबीसी प्राप्त होती हैं। अनिवृत्तिकरण गुणस्थानमे दो प्रकृतिक और एक प्रकृतिक इस प्रकार दो उदयस्थान होते है। यहाँ दो प्रकृतिक उदयस्थानमे क्रोधादि चारमेसे कोई एक
और तीन वेदो में से कोई एक इस प्रकार दो प्रकृतियोका उदय होता है। सो यहाँ तीन वेदोसे संज्वलन क्रोधादि चारको गुणित करने पर १२ भंग प्राप्त होते हैं। तदनन्तर वेदकी उदयन्युच्छित्ति हो जान पर एक प्रकृतिक उदयस्थान होता है। जो चार, तीन, दो
और एक प्रकृतिक बन्धके समय प्राप्त होता है। यद्यपि एक प्रकतिक उदयमें चार, प्रकृतिक बन्धकी अपेक्षा चार, तीन प्रकृतिक बन्धकी अपेक्षा तीन, दो प्रकृतिक वन्धकी अपेक्षा दो और एक प्रकृतिक बन्धकी अपेक्षा एक इस प्रकार कुल १० भंग कह आये हैं किन्तु यहां बन्धस्थानोके भेदकी अपेक्षा न करके कुल ४' भंग ही विक्षित हैं। तथा सूक्ष्मसम्पराय गुणस्थानमे एक सूक्ष्म लोभका उदय होता है अतः वहां एक ही भंग है। इस प्रकार एक प्रकृतिक उदय में कुल पाँच भंग होते हैं। इसके
आगे उपशान्त, मोह आदि गुणस्थानोमें मोहनीयका उदय नहीं होता अत: उनमें उदयकी अपेक्षा एक भी भंग नहीं होता। इस प्रकार यहाँ उक्त गाथाओके निर्देशानुसार किस गुणस्थानमें कौन कौन उदयस्थान और उनके कितने भंग होते हैं इसका विचार