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सप्ततिकाप्रकरण उदयस्थानमें क्रमसे बारह और पांच भंग होते हैं इसका स्पष्टी करण पहले कर ही आये हैं, अतः इन दो उदयस्थानों में क्रमसे १२
और ५भग कहे । इस प्रकार सब उदयस्थानों में कुल मिलाकर ५२ चौवीसी और १७ भंग प्राप्त होते हैं। इन्हीं भंगोका गुणस्थानोंकी अपेक्षा अन्तर्भाष्य गाथामें निम्नप्रकारसे विवेचन किया गया है
'अट्ठग चउ चउ चउरटुगा य चउरो य होति चउवीसा। मिच्छाइ अपुव्वंता वारस पणगं च अनियट्ट ।।
अर्थात-'मिथ्याष्टिसे लेकर अपूर्वकरण तक आठ गुणस्थानोमे भगोंकी क्रमसे आठ, चार, चार,आठ.आठ, आठ, आठ
और चार चौवीसी होती हैं तथा अनिवत्तिकरणमें १२ और ५भंग होते हैं।'
इस प्रकार भंगोंके प्राप्त होने पर १२६५ उदय विकल्प और ८४४७ पदवृन्द प्राप्त होते हैं जिनसे सब संसारी जीव मोहित हो रहे हैं, क्योकि ५२ को २४ से गुणित कर देने पर जो १२४८ प्राप्त हुए उनमे १७ और जोड़ देने पर कुल उदयविकल्पोंकी कुल संख्या १२६५ ही प्राप्त होती है। तथा १० से लेकर ४ प्रकृतिक उदयस्थान तकके सब पद ३५२ होते हैं अतः इन्हें २४ से गुणित कर देने पर ८४४८ प्राप्त हुए । तदनन्तर इनमें दो प्रकृतिक उदयस्थानके २४१२२४ और एक प्रकृतिक उदयस्थानके ५ इसप्रकार २९ और मिला देने से पदवृन्दोंकी कुल संख्या ८४७७ प्राप्त होती
है। कहा भाला देने से पदवी प्रकृतिक उदयस्थान प्रकृतिक उदय
'वारसपणसट्ठसया उदयविगप्पेहिं मोहिया जीवा। चुलसीईसत्तत्तरिपयविंदसएहिं विन्नेया ।'
अर्थात्-'ये संसारी जीव १२६५ उदय विकल्पोंसे और ८४७७ पद वृन्दोंसे मोहित हो रहे हैं।'
गुणस्थानों की अपेक्षा उदयविकल्पों का ज्ञापक कोष्ठक--