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गुणस्थान में भंगविचार
२३५ किया । अन्तिम गाथामे जो भंगोका प्रमाण पूर्वोद्दिष्ट क्रमसे जानने की सूचना की है सो उसका इतना ही मतलव है कि जिस प्रकार पहले सामान्यसे मोहनीयके उदयस्थानोका बधन करते समय उनके भंग वतला आये हैं उसी प्रकार यहाँ भी उनका प्रमारण समझ लेना चाहिये जिनका निर्देश हमने प्रत्येक गुणस्थानके उदयस्थान चतलाते समय किया ही है ।
अव मिथ्यादृष्टि आदि गुणस्थानोकी अपेक्षा दससे लेकर एक पर्यन्त गुणस्थानोमें अगली गाथा द्वारा भगोकी संख्या बतलाते हैं
एक्कं छडेकारेकारसेव एक्कारसेव] नव तिनि । एए चउवीसगया बार दुगे पंच एकम्मि ॥ ४६ ॥
अर्थ-१० से लेकर ४ प्रकृतिक तकके उदयस्थानीमे क्रमसे एक, छह, ग्यारह, ग्यारह, ग्यारह, नौ और तीन चौबीसी भग होते हैं। तथा दो प्रकृतिक उदयस्थानमे १२ और एक प्रकृतिक उदयस्थानमे पाँच भंग होते हैं ।
विशेषार्थ दस प्रकृतिक उदयस्थान एक ही है अत इसमें भगोंकी एक चौवीसी कही। नौ प्रकृतिक उद्यस्थान छह हैं अतः इसमे भंगो की छह चौवीसी कहीं । ८७ और ६ प्रकृतिक उदयस्थान ग्यारह ग्यारह हैं अतः इनमें भगोकी ग्यारह ग्यारह चौवीसी कहीं । पाच प्रकृतिक उद्यस्थान नौ हैं अतः इनमे भगोकी नौ चौबीसी कहीं और चार प्रकृतिक उदयस्थान तीन हैं त इनमें गोकी तीन चौबीसी कहीं। तथा दो प्रकृतिक और एकप्रकृतिक
( १ ) 'एक य छक्केयार एयारेयारसेव गाव तिण्ाि । एदे चठवीसगदा चदुवीयार दुगठाणे ॥' गो० कर्म० गा० ४८१ ।
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