________________
गुणस्थानोंमें भंगविचार उपान्त्य समयमें ही चक्षुदर्शनावरण आदि रूप परणम जायगा
और इस प्रकार क्षीणमोह गुणस्थानके अन्तिम समयमें निद्री और प्रचलाका सत्त्व न रह कर केवल चारकी ही सत्ता रहेगी। अत. ऊपर जो क्षीणमोह गुणस्थानमे चार प्रकृतिक उदय और छह प्रकृतिक सत्त्व यह भग बतलाया है वह क्षीणमोहके उपान्त्य समय तक ही प्राप्त होता है तथा अन्तिम समयमे चार प्रकृतिक उदय और चार प्रकृतिक सत्त्व यह एक भग और प्राप्त होता है। इस प्रकार क्षीणमोहमें भी दो भंग होते हैं यह सिद्ध हुआ।
अब गुणस्थानोमें वेदनीय आदि कर्मों के भंग बतलाते हैंवेयणियाउयगोए विभज मोहं परं चोच्छं ॥४१॥
अर्थ-गुनस्थानों में वेदनीय आयु और गोत्र कर्मके भगोका विभाग करके तदनन्तर मोहनीयका कथन करेंगे।
विशेषार्थ-~~यहा ग्रन्थकारने वेदनीय, आयु और गोत्र कर्मके भगोंके विभाग करने मात्रकी सूचना की है किन्तु किस गुणस्थानमें किस कमके कितने भग होते हैं यह नहीं बतलाया है, जिनका बतलाया जाना जरूरी है। ___यद्यपि मलयगिरि आचार्यने अपनी टीकामे इन कर्मोके भगोका विवेचन किया है पर उनका यह कथन अन्तर्भाष्य सम्बन्धी गाथाओ पर अवलवित है। उन्होने स्वय अन्तर्भाष्यकी गाथाश्रीको उद्धृत करके तदनुसार गुणस्थानोमें वेदनीय, गात्र और आयु कर्मके भंग बतलाये हैं। यद्यपि सूत्रकारने वेदनीय, आयु और गोत्र इस क्रमसे विभाग करनेका निर्देश किया है किन्तु अन्तर्माष्यगाथामे पहले वेदनीय और गोत्रके भंग बतलाये हैं। अत. यहां भी इसी क्रमसे खुलासा किया जाता है। अन्तर्भाप्यमें लिखा है