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जीवसमासोमें भंगविचार २०३ निर्माण, तिथंचगति, तिथंचगत्यानुपूर्वी, दो इन्द्रियजाति, ब्रस, वादर, पर्याप्तक, दुर्भग, अनादेय तथा यश कीर्ति और अयश' कीर्तिमे से कोई एक इस प्रकार इन २१ प्रकृतियों का उदय होता है। जो अपान्तराल गतिमे प्राप्त होता है। इसके यश कीर्ति
और अयश कीर्तिके विकल्पसे दो भग होते हैं। तदनन्तर शरीरस्थ जीवकी अपेक्षा इसमें औदारिक शरीर, औदारिक प्रांगोपाग, हुण्डसंस्थान, सेवार्तसहनन, उपघात और प्रत्येक इन छह प्रकृतियोको मिला कर तिर्यंचगत्यानुपूर्वीके निकाल लेनेसे २६ प्रकृतिक उदयस्थान होता है। यहा भी वे ही दो भाग होते है । तदनन्तर शरीर पर्याप्ति से पर्याप्त हुए जीवकी अपेक्षा इसमे पराघात और अप्रशस्त विहायोगति इन दो प्रकृतियोके मिला देने पर २८ प्रकृतिक उदयस्थान होता है। यहा भी वे ही दो भग होते हैं । २९ प्रकृतिक उदयस्थान दो प्रकारसे होता है. एक तो जिसने श्वामोच्छवास पर्याप्तिको प्राप्त कर लिया है उसके उद्योतके विना केवल उच्छवास का उदय होनेसे होता है और दूसरे शरीर पर्याप्ति की प्राप्ति होनेके पश्चात् उद्योत का उदय हो जाने से होता है । सो इनमें से प्रत्येक स्थानमें पूर्वोक्त ही दो दो भग प्राप्त होते हैं। इस प्रकार २९ प्रकृतिक उदयस्थानके कुल चार भग हुए। इसी प्रकार ३० प्रकृतिक उदयस्थान भी दो प्रकार से प्राप्त होता है। एक तो जिमने भापा पर्याप्तिको प्राप्त कर लिया है उसके उद्योतका उदय न होकर यदि केवल स्वरकी दो प्रकृतियोमें से किसी एक का उदय होने से होता है और दूसरे जिसने श्वासोच्छवास पर्याप्तिको प्राप्त किया और अभी भापा पर्याप्तिकी प्रामि नहीं हुई किन्तु इसी बीचमे उसके उद्योतका उदय हो गया तो भी ३० प्रकृतिक उदयस्थान,बन जाती है। इनमे से पहले प्रकार के ३० प्रकृतिक उदयस्थानमें यश कीर्ति, और अयश कीर्ति तथा