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• सप्ततिकाप्रकरण कर देने पर ८४६४६=२८८ भंग प्राप्त होते हैं। तदनन्तर इसके शरीर पर्याप्तिसे पर्याप्त हो जाने पर पराघात तथा प्रशस्त और अप्रशस्त विहायोगतिमें से कोई एक इस प्रकार दो प्रकृतियोका उदय और होने लगता है अत. पूर्वोक्त २६ प्रकृतियोमे इन दो प्रकृतियोके मिला देने पर २८ प्रकृतिक उदयस्थान होता है। यहाँ दोनो विहायोगतियोंकी अपेक्षा भंगोके विकल्पं और बढ़ गये है अत पूर्वोक्त २८८ को २से गुणित देने पर ५७६ भंग प्राप्त होते हैं। २९ प्रकृतिक उदयस्थान दो प्रकारसे प्राप्त होता है। एक तो जिसने श्वासोच्छास पर्याप्तिको पूर्ण कर लिया है उसके उद्योत के विना केवल उच्छासका उदय होनेसे प्राप्त होता है और दूसरे शरीर पर्याप्तिके पूर्ण होने पर उद्योतका उदय हो'जानसे होता है। सो इनमेसे प्रत्येक स्थानमें पूर्वोक्त ५७६ भग होते हैं। इस प्रकार २९ प्रकृतिक उदयस्थानके कुल ११५२ भंग हुए। तथा ३० प्रकृतिक उदयस्थान भी दो प्रकारसे प्राप्त होता है। एक तो जिसने भापा पर्याप्तिको पूर्ण कर लिया है उसके उद्योतके विना स्वरकी दो प्रकृतियोमेसे किसी एक प्रकृतिके उदयसे होता है है और दूसरे जिसने श्वासोच्छ्रास पर्याप्तिको पूर्ण कर लिया । उसके उद्योतका उदय हो जाने से होता है । इनमेसे पहले प्रकारके स्थानमें ११५२ भग होते हैं, क्योकि पूर्वोक्त ५७६ भंगोको स्वरद्विकसे गुणित करने पर ११५२ ही प्राप्त होते हैं तथा दूसरे प्रकारके स्थानमै ५७६ ही भग होते हैं । इस प्रकार ३० प्रकृतिक उदयस्थानके कुल भङ्ग १७२८ हुए । इसके आगे जिसने भाषा पर्याप्तिको भी पूर्ण कर लिया है और जिसके उद्योतका भी उदय है उसके ३१ प्रकृतिक उदयस्थान होता है । यहाँ कुल भङ्ग ११५२ होते हैं । इस प्रकार असज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्तकके सव उदयस्थानोके कुल भग ४९०४ होते हैं। ये जीव वैक्रिय