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सप्ततिकाप्रकरण इसी प्रकार ३० प्रकृतिक बन्धस्थानमे भी २५ प्रकृतिक वन्धस्थानके समान ३० सत्त्वस्थानोंका ग्रहण करना चाहिये। किन्तु यहाँ भी कुछ विशेषता है जिसे आगे बतलाते हैं। वात यह है कि तीर्थकर प्रकृतिके साथ मनुष्यगतिके योग्य ३० प्रकृतियोंका वन्ध होते समय २१, २५, २७, २८, २६ और ३० ये छह उदयस्थान और प्रत्येक उदस्थानमे ६३ और ८६ ये दो सत्त्वस्थान होते हैं जिनका कुल जोड़ १२ होता है। इन्हे पूर्वोक्त ३० भनोंमें मिला देने पर ३० प्रकृतिक बन्धस्थानमे कुल सत्त्वस्थान ४२ होते हैं। तथा ३१ प्रकतियोके वन्धमै तीर्थकर और आहारकद्विकका वन्ध अवश्य होता है अत यहाँ ६३ की ही सत्ता है। तथा एक प्रकृतिक बन्धके समय ८ सत्त्वस्थान होते हैं। सो इनमेसे ६३, ६२, ८६ और ८८ ये चार सत्त्वस्थान उपशमश्रेणीमे होते हैं और ८०, ७६,७६ और ७५ ये चार सत्त्वस्थान पक्श्रेणीम होते हैं। तथा वन्धके अभावमें संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्तक्के पूर्वोक्त आठ सत्त्वस्थान होते हैं।, सो इनमें से प्रारम्भके ४ उपशान्तमोह गुणस्थानमें प्राप्त होते हैं और अन्तिम ४ क्षीणमोह गुणस्थानमे प्राप्त होते हैं। इस प्रकार संबी पचेन्द्रिय पर्याप्तकके सब मिलाकर २०८ सत्त्वस्थान होते हैं। ' अब यदि द्रव्यमनके संयोगसे केवलीको भी संज्ञी मान लेते हैं तो उनके भी २६ सत्त्वस्थान प्राप्त होते हैं । यथा-केवलीके २०, २१, २६, २७, २८, २९, ३०, ३१,६ और ये दस उदयस्थान होते हैं। सो इनमेसे २० प्रकृतिक उदयस्थानमें ७६ और ७५ ये दो सत्त्वस्थान होते हैं। तथा २६ और २८ प्रकृतिक उदयस्थानोंमें