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नामकर्मके उदयस्थानोके भङ्ग १५७ विशेपार्थ-पहले नामकर्मके २०, २१, २४, २५, २६, २७, २८ २९,३०,३१, ९ और ८ इस प्रकार १२ उदयस्थान वतला आये है। तथा इनमेसे किस गतिमें क्तिने उदयस्थान और उनके क्तिने भग होते है यह भी बतला आये हैं। अब यह बतलाते हैं कि उनमेंसे किस उदयस्थानके कितने भग होते है
बीम प्रकृतिक उदयस्थानका एक भंग है ना अतीर्थकर केवली के होता है। २१ प्रकृतिक उडयस्थानके एकेन्द्रियो । अपेक्षा ५, विकलेन्द्रियाकी अपेक्षा ९ तिचंचपचेन्द्रियोंकी अपेक्षा ९, मनुष्यो की अपेक्षा ९ तीर्थकरकी अपेना १ देवोंकी अपेक्षा ८ और नारक्यिोकी अपेक्षा १ भग बनला आये हैं जिनका कुल जोड़ ४२ होता है, अत २१ प्रकृतिक उदयस्थान के ४२ भग कहे। २४ प्रकृतिक उज्यस्थानके एकेन्द्रियोकी अपेक्षा ही ११ भग प्राप्त होते है, क्योकि यह उदयस्यान अन्य जीवोके नहीं होता, अत. इसके ११ भग कहे। २५ प्रकृतिक उदयम्थानके एकेन्द्रियाकी अपेक्षा मात, वैक्रिय शरीरको करनेवाले तिर्यंच पचेन्द्रियोंकी अपेक्षा ८, वक्रिय शरीरको करनवाले मनुप्योकी अपेक्षा ८, आहारक सयतोकी अपना १, देवोकी अपेना ८ और नारकियोंकी अपेक्षा १ भग बतला आये है जिनका जोड़ ३३ होता है अतः २५ प्रकृतिक उदयस्थानके ३३ भग कहे। २६ प्रकृतिक उदयस्थानके एकेन्द्रियोकी अपेना १३, विकलेन्द्रियोकी अपेक्षा ९, प्राकृत तिथंच पचेन्द्रियो की अपेक्षा २८९ और प्राकृत मनुष्योकी अपेक्षा २८९ भग वतला आये हैं जिनका जोड़ ६०० होता है, अत इस उदयस्थानके कुल भग ६०० कहे । २७ प्रकृतिक उदयस्थानके एकेन्द्रियोकी अपेचा ६, वैक्रिय तिर्यंच पचेन्द्रियोंकी अपेक्षा ८, वैक्रिय मनुष्योकी अपेक्षा ८, आहारक संयतोकी अपेक्षा १ केवलियोंकी अपेक्षा १ देवोकी अपेक्षा ८ और नारकियोंकी अपेक्षा १ भग चतला आये हैं