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जीवसमासोंमें भंगविचार च्युत होकर क्रमशः मिथ्यादृष्टि होता है उसीके मिथ्यादृष्टि गुणस्थानमें एक प्रावलि कालतक मिथ्यात्वका उदय नहीं होता। परन्तु क्त जीवस्थानवाले जीव तो उपशम श्रेणी पर चढ़ते नहीं श्रत. इनके मात प्रकृतिक उठयस्थान सम्भव नहीं। यहा ८ प्रकृतिक उदयस्थानमें ८ भग होते है, क्योकि इन नीवस्थानोंमे एक नपुनक वेदका ही उदय होता है पुरुपवेद और बीवेदका नहीं, अतः यहां वेदका विश्ल्प नो सम्भव नहीं। इस स्थानमे विकल्पवाली प्रकृतिया अब रही कोधादिक चार और दो युगल सो इनके विकल्पसे पाठ भग प्राप्त होते है। ९ प्रकृतिक उदयस्थान भय और जुगुप्सा के विकल्पसे दो प्रकारका है अत यहाँ आठ को दो से गुणित कर देंन पर मोलह भग होते हैं। तथा १० प्रकृनिक उदयस्थान एक ही प्रकारका है अत. यहा पूर्वोक्त आठ भग ही होते हैं। इस प्रकार तीन उदयम्थानोके कुल ३२ भग हुए जो प्रत्येक जीवस्थानमे अलग अलग प्राप्त होते हैं। तथा इन जीवस्थानीमें से प्रत्येकम २८, २७ और २६ प्रकृतिक ये तीन सत्त्वस्थान होते हैं, क्योकि मिथ्याष्टि गुणस्थानमै इन तीन के सिवा और सत्वम्थान नहीं पाये जाते।
तथा पर्याप्तक वादर एकेन्द्रिय, पर्याप्तक दो इन्द्रिय, पर्याप्तक तीन इन्द्रिय, पर्याप्तक चार इन्द्रिय और पर्याप्तक असज्ञी पचेन्द्रिय इन पांच जीवस्थानो मे २२ और २१ प्रकृतिक दो वन्ध