________________
२००
सप्ततिकाप्रकरण हो जाने से २५ और २६ प्रकृतिक उदयस्थानमे ७८ प्रकृतिक सत्त्वस्थान भी बन जाता है। इस प्रकार उपर्युक्त कथनका सार यह है कि २१ और २४ इनमें से प्रत्येक उदयस्थानमें पांच पाच सत्त्वस्थान होते है और २५ तथा २६ इन दो मे से प्रत्येकम एक अपेक्षा चार चार और एक अपेक्षा पांच पांच सत्त्वस्थान होते हैं। किस अपेक्षासे चार और किस अपेक्षासे पांच सत्त्वस्थान होते हैं इसका उल्लेख ऊपर किया ही है। । __आगे गाथाकी सूचनानुसार वादर पर्याप्तक एकेन्द्रिय जीवस्थानमे वन्धादिस्थान और यथासम्भव उनके भंग बतलाते हैवादर एकेन्द्रिय पर्याप्तक जीव भी मनुष्यगति और तिर्यंचगतिके योग्य प्रकृतियोका ही वन्ध करता है अत. यहां भी २३, २५, २६, २९ और ३० प्रकृतिक पाच बन्धस्थान और तदनुसार इनके कुल भंग १३६१७ होते हैं। तथा उदयस्थानोकी अपेक्षा विचार करने पर यहा एकेन्द्रिय सम्बन्धी पांचो उदग्रस्थान सम्भव हैं, क्योकि सामान्यसे अपान्तराल गतिकी अपेक्षा २१ प्रकृतिक, शरीरस्थ होनेकी अपेक्षा २४ प्रकृतिक, शरीर पर्याप्तिसे पर्याप्त होनेकी अपेक्षा २५ प्रकृतिक और श्वासोच्छवास पर्याप्ति से पर्याप्त होने की अपेक्षा २६ प्रकृतिक ये चार उदयस्थान तो पर्याप्त एकेन्द्रिय के नियमसे होते हैं। किन्तु यह वादर है अतः यहां आतप और उद्योतमें से किसी एक प्रकृतिका उदय और सम्भव है, अतः यहां २७ प्रकृतिक उदयस्थान भी बन जाता है। इस प्रकार बादर एकेन्द्रिय पर्याप्तक जीवम्थानमें २१,२४,२५,२६, और २७ प्रकृतिक पांच उदयस्थान होते है यह सिद्ध हुआ। पहले, बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्तके २१ प्रकृतिक उदयस्थानकी प्रकृतियां गिना आये हैं उनमें अपर्याप्तकके स्थानमें पर्याप्तक के मिला देने पर बादर एकेन्द्रिय, पर्याप्तकके २१ प्रकृतिक उदयस्थान होता है। किन्तु