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जीवसमासोमें भंगविचार
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इन चार प्रकृतियोको मिलाओ और तिर्यचगत्यानुपूर्वीको निकाल दो तो २४ प्रकृतिक उदयस्थान प्राप्त होता है । यह शरीरस्थ जीवके होता है । यहा प्रत्येक और साधारण के विकल्पसे दो भग होते हैं । अनन्तर शरीर पर्याप्तिसे पर्याप्त हुए जीवकी अपेक्षा इसमें पराघात के मिला देने पर २५ प्रकृतिक उदयस्थान होता है । यहा भी वे ही दो भंग होते हैं । अनन्तर प्रारणापन पर्याप्त से पर्याप्त हुए जीवको अपेक्षा इसमें उच्छ्वास प्रकृतिके मिला देने पर २६ प्रकृतिक उदयस्थान होता है । यहा भी पूर्वोक्त दो भग होते हैं । इस प्रकार सूक्ष्म पर्याप्तकके चार उदयस्थान और उनके कुल मिलाकर सात भग होते हैं । तथा इस जीवस्थानमें ९२, ८८, ८६, ८० और ७८ प्रकृतिक पाच सत्त्वस्थान होते हैं । निर्यचगति में तीर्थकर प्रकृतिकी सत्ता नहीं होती इसलिये यहां ९३ और ८९ ये दो सत्त्वस्थान तो सम्भव नहीं, अव शेष रहे मिथ्यादृष्टि गुणस्थानसम्बन्धी ६२, ८८, ८६, ८०, और ७८ ये पाच सत्त्वस्थान सो वे सब यहा सम्भव हैं । फिर भी जव साधारण प्रकृतिके उदयके साथ २५ और २६ प्रकृतिक उदयस्थान लिया जाता है तब इस भंगमें ७८ प्रकृतिक सत्त्वस्थान सम्भव नहीं, क्योकि अग्निकायिक और वायुकायिक जीवोको छोड़कर शेष सब जीव शरीर पर्याप्तिसे पर्याप्त होने पर मनुष्यगति और मनुष्यगत्यानुपूर्वी का नियमसे बन्ध करते हैं । और २५ तथा २६ प्रकृतिक उदयस्थान शरीर पर्याप्तिसे पर्याप्त जीवके ही होते हैं । अत साधारण सूक्ष्म पर्याप्त जीवके २५ और २६ प्रकृतिक उदयस्थानके रहते हुए ७८ प्रकृतिक सत्त्वस्थान नहीं होता । किन्तु शेष चार सत्त्वस्थान होते हैं यह सिद्ध हुआ । हां जब प्रत्येक प्रकृतिके साथ २५ और २६ प्रकृतिक उदयस्थान लिया जाता है तब प्रत्येक श्रमिकायिक और वायुकायिक जीव भी सम्मिलित