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सप्ततिकाप्रकरण : . उद्वलना सम्भव नहीं। २४ प्रकृतिक उदयस्थानके समय भी पांची सत्त्वस्थान होते हैं। केवल वैक्रिय शरीरको करनेवाले वायुकायिक जीवोंके २४ प्रकृतिक उदयस्थान के रहते हुए ८० और ७८ ये दो सत्त्वस्थान नहीं होते, क्योकि इनके वैक्रिय पटक और मनुप्यहिक इनका सत्त्व नियमसे है। कारण कि ये जीव वैक्रिय शरीरका तो साक्षात् ही अनुभव कर रहे हैं अत. इनके वैक्रियद्विककी उद्वलना सम्भव नहीं। और इसके अभावमें देवद्विक
और नरकद्विक्रकी भी उद्वलना सम्भव नहीं, क्योकि वैक्रियपटककी उबलना एक साथ होती है ऐमा स्वभाव है। और वैक्रियपटककी उद्वलना हो जाने पर हो मनुष्यद्विककी उद्वलना होती है अन्यथा नहीं। चूर्णिमें भी कहा है
'वैश्वियछक्कं उन्वलेउ पच्छा मणुयद्गं उच्चलेइ ।।
अर्थात् 'यह जीव वैक्रियपटककी उद्घलना करके अनन्तर मनुप्यद्विककी उद्वलना करता है।' ___ अतं. सिद्ध हुआ कि वैक्रियशरीर को करनेवाले वायुकायिक जीबोके २४ प्रकृतिक उदयस्थानके रहते हुए ९२, ८८ और ८६ ये तीन सत्त्वस्थान ही होते हैं। ८० और ७८ सत्वस्थान नहीं होते।
२५ प्रकृतिक उदयस्थानके होते हुए भी उक्त पांची सत्त्वस्थान होते हैं। किन्तु उनमेसे ७८ प्रकृतिक सत्त्वस्थान वैक्रियशरीरको नहीं करनेवाले वायुकायिक जीवोंके तथा अग्निकायिक जीवोंके ही होता है अन्य के नहीं, क्योकि अग्निकायिक और वायुकायिक जीवोको छोड़कर अन्य सव पर्याप्तक जीव नियमसे मनुष्यगनि और मनुष्यगत्यानुपूर्वीका बन्ध करते हैं। चूर्णिकारने भी कहा है कि
'तेऊवाऊवनो पजत्तगो मणुयगई नियमा वंधे।'