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वन्धस्थानत्रिकके संवेध भंग १७१ चतुष्ककी सत्ता प्राप्त की, अत उसके २८ प्रकृतियोके वन्धके समय ८६ प्रकृतियोंकी सत्ता होती है। और यदि वह जीव सक्लेश परिणामवाला हुआ तो उसके नरक्गतिके योग्य २८ प्रकृतियोका वन्ध होता है और इस प्रकार नरकद्विक और वैक्रिय चतुष्ककी सत्ता प्राप्त हो जानेके कारण भी ८६ प्रकृतिक सत्त्वस्थान होता है। इस प्रकार ३० प्रकृतिक उदयस्थानमे २८ प्रकृतियोका बन्ध होते समय ९२, ८९, ८८ और ८६ ये चार सत्त्वस्थान होते है यह सिद्ध हुआ। नथा इकतीम प्रकृतिक उदयस्थानमें ९२, ८८ और ८६ ये तीन सत्त्वस्थान होते हैं। यहाँ ८९ प्रकृतिक सत्त्वस्थान नहीं होता, क्योकि जिसके २८ प्रकृतियोका बन्ध और ३१ प्रकतियोका उदय है वह पचेन्द्रिय तिर्यंच ही होगा। किन्तु तिर्यचो के तीर्थकर प्रकृतिकी सत्ता नहीं है, क्योकि तीर्थकर प्रकृतिकी सत्तावाला मनुष्य तियेचो मे नही उत्पन्न होता। अत यहा ८९ प्रकृतिक सत्त्वस्थानका निपेध किया है।
अव २९ और ३० प्रकृतिक बन्धस्थानोमेंसे प्रत्येकमें ९ उदय स्थान ओर ७ सत्त्वस्थान होते हैं इसका क्रमश विचार करते हैं। २९ प्रकृतिक बन्धस्थानमें २१, २४, २५, २६ २७, २८, २९, ३०
और ३१ ये नौ उदयस्थान होते है। इनमेंसे २१ प्रकृतियोका उदय तिर्यंच और मनुष्योके योग्य २९ प्रकृतियोका बन्ध करनेवाले पर्याप्त और अपर्याप्त एकेन्द्रिय, विकलेन्द्रिय, तिथंच और मनुष्योके तथा देव और नारकियोके होता है। चौवीम प्रकृतियोका उदय पर्याप्त
और अपर्याप्त एकेन्द्रियोके होता है । पञ्चीस प्रकृतियोका उदय पर्याप्त एकेन्द्रियोके देव और नारकियोके तथा वैक्रियशरीरको करनेवाले मियादृष्टि तिथंच और मनुष्योके होता है। २६ प्रकृतियोंका उदय पर्याप्तक एकेन्द्रियोके तथा पर्याप्त और अपर्याप्त विकलेन्द्रिय, तिर्यंच पचेन्द्रिय और मनुष्योके होता है । २७ प्रकृतियोका उदय पर्याप्तक