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चन्धस्थानत्रिकके संवेधभंग
१७७ और ८० तथा ७६ प्रकृतिक सत्त्वस्थान होंगे। तथा जव केवली ममुद्रातके समय औदारिक मिश्रकाययोगमें रहते हैं तव उनके औदारिकद्विक, वज्रर्पभनाराचसहनन छह सस्थानोमेंसे कोई एक संस्थान, उपघात और प्रत्येक इन छह प्रकृतियोंको पूर्वोक्त २० प्रकृतियोमें मिलाने पर २६ प्रकृतिक उदयस्थान होता है। तथा ७९ और ७५ ये दो मत्त्वस्थान होते हैं । अव यदि तीर्थकर औदारिक मिश्रकाययोगमे हुए तो उनके तीर्थकर प्रकृतिके और मिल जानेसे २७ प्रकृतिक उदयस्थान तथा ८० और ७६ ये दो सत्त्वस्थान होते है।
तथा इन २६ प्रकृतियोमें पराघात, उच्चास, शुभ और अशुभ विहायोगतिमेंसे कोई एक तथा दो स्वरोमें से कोई एक इन चार प्रकृतियोंके मिला देने पर ३० प्रकृतिक उदयस्थान होता है जो औदारिक काययोगमें विद्यमान सामान्य केवली तथा ग्यारहवें
और १२ वें गुणस्थानमे प्राप्त होता है। इस हिसावसे ३० प्रकृतिक उदयस्थानमें ९३, ९२, ८९, ८८, ७९ और ७५ ये छह सत्त्व. स्थान होते है । इनमसे प्रारम्भके ४ सत्त्वस्थान उपशान्त मोह गुण स्थानको अपेक्षा और अन्तके दो सत्त्वम्थान क्षोणमोह और सयोगिकेवलीकी अपेक्षा कहे है। अब यदि इस ३० प्रकृतिक उदयस्थान मेंसे स्वर प्रकृतिको निकाल दे और तीर्थकर प्रकृतिको मिला दे तो भी उक्त उदयस्थान प्राप्त होता है जो तीर्थकर केवलीके वचन योगके निरोध करने पर होता है। किन्तु इसमे सत्त्वस्थान ८० और ७६ ये दो होते है क्योकि सामान्य केवलीके जो ७९ और ७५ सत्त्वस्थान वह आये हैं उनमे तीर्थकर प्रकृतिके मिल जानेसे ८० और ७६ ही प्राप्त हीते हैं।
तथा सामान्य केवलीके जो ३० प्रकृतिक उदयस्थान वतला आये है उसमे तीर्थकर प्रकृतिके मिलाने पर तीर्थकर केवलीके ३१ प्रकृतिक उदयस्थान होता है और उसी प्रकार ८० और ७६ ये दो