________________
१७८
सप्ततिकाप्रकरण सत्त्वस्थान होते हैं, क्योकि सामान्यकेवलीके जो ७५ और ७९ ये दो सत्त्वस्थान बतलाये है उनमें तीर्थकर प्रकृति और मिला दी गई है।
सामान्य केवलीके जो ३० प्रकृतिक उदयस्थान वतला आये है उसमेसे वचन योगके निरोध करने पर स्वर प्रकृति निकल जाती है अत २९ प्रकृतिक उदयस्थान होता है। या तीर्थकर केवलीके जो ३० प्रकृतिक उदयस्थान बतलाया है उसमेसे श्वासोच्छासके निरोध करने पर उच्छास प्रकृतिके निकल जानेसे २९ प्रकृतिक उदयस्थान होता है। इनमेसे पहला उदयस्थान सामान्यकेवलीके और दूसरा उदयस्थान तीर्थकर केवलीके होता है, अतः प्रथम २९ प्रकृतिक उदयस्थानमे ७९ और ७५ तथा द्वितीय २९ प्रकृतिक उदयस्थानमे ८० और ७६ ये सत्त्वस्थान प्राप्त होते है।
सामान्यकेवलीके वचनयोगके निरोध करने पर २९ प्रकृतिक उदयस्थान कह आये हैं उसमेंसे श्वासोच्छासके निरोध करने पर उच्छ्वास प्रकृतिके कम हो जानेसे २८ प्रकृतिक उदयस्थान होता है। यह सामान्यकेवली के होता है अत. यहाँ ७९ और ७५ ये दो सत्त्वस्थान होते हैं।
तथा तीर्थकर केवलीके अयोगिकेवली गुणस्थानमे ९प्रकृतिक उदयस्थान होता है और उपान्त्य समय तक ८० और ७६ तथा अन्तिम समयमे ९ प्रकृतिक ये तीन सत्त्वस्थान होते हैं। किन्तु सामान्य केवलीकी अपेक्षा अयोगिकेवली गुणस्थानमे ८ प्रकृतिक उदयस्थान होता है और उपान्य समय तक ७९ और ७५ तथा अन्तिम समयमें ८ प्रकृतिक ये तीन सत्त्वस्थान होते हैं।
इस प्रकार वन्धके अभावमे २०,२१,२६,२७,२८,२९,३०,३१,९, और ८ ये दस उदयस्थान और ९३ ९२,८९,८८,८०,७९७६, ७५, ९और ८ ये १० सत्त्वस्थान होते हैं यह सिद्ध हुआ।