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नामकर्मके उदयस्थान
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स्थान में सुस्वरके मिला देनेपर २९ प्रकृतिक उदयस्थान होता है । यहाँ भी पूर्ववत् आठ भग होते हैं । देवोके दुस्वर प्रकृतिका उदय नहीं होता, अत इसके निमित्तसे प्राप्त होनेवाले भग यहाँ पर नहीं कहे । अथवा प्राणापान पर्याप्तिसे पर्याप्त हुए जीवके उच्छ्राससहित २८ प्रकृतिक उदयस्थानमे उद्योतके मिला देनेपर २९ प्रकृतिक उदयस्थान होता है। देवोके उद्योतका उदय उत्तर विक्रिया करनेके समय प्राप्त होता है । यहाँ भी पहलेके समान आठ भग होते हैं। इस प्रकार २९ प्रकृतिक उदयस्थानके कुल भाग १६ होते हैं । तदनन्तर भाषा पर्याप्तिसे पर्याप्त हुए जीवके सुस्वर सहित २९ प्रकृतिक उदयस्थानमे उद्योतके मिला देनेपर ३० प्रकृतिक उदयस्थान होता है । यहाँ भी पूर्ववत् आठ भाग होते है । इस प्रकार देवोंके छह उदयस्थानोंके कुल भग ८+C+८+१६+१६+८=६४ होते हैं ।
नारकियोंके २१, २५, २७, २८ और २९ ये पाँच उदयस्थान होते है । यहाँ पूर्वोक्त वारह ध्रुवोदय प्रकृतियोमे नरकगति, नरकगत्यानुपूर्वी, पचेन्द्रियजाति, त्रस, बादर, पर्याप्तक, दुर्भग, और यश कीर्ति इन नौ प्रकृतियोके मिला देने पर २१ प्रकृतिक उदयस्थान होता है । यहाँ सव प्रशस्त प्रकृतियोंका उदय है, अत एक भंग हुआ । तदनन्तर शरीरस्थ जीवके वैक्रिय शरीर, वैक्रिय आगोपाग, हुडसस्थान, उपघात और प्रत्येक इन पाँच प्रकृतियोके मिला देने पर और नरकगत्यानुपूर्वीके निकाल लेने पर २५ प्रकृतिक उदयस्थान होता है । यहाँ भी एक ही भंग है । तदनन्तर शरीर पर्याप्तिसे पर्याप्त हुए जीवके पराघात और
प्रशस्त विहायोगतिके मिला देने पर २७ प्रकृतिक उदयस्थान होता है । इसका भी एक ही भग है । तदनन्तर प्रारणापानपर्याप्तिसे पर्याप्त हुए जीवके उच्छासके मिला देने पर २८