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नामकर्मके उदयस्थान
१४१ कीर्ति और अयश कीर्तिके निमित्तसे चार भङ्ग होते है। तथा सूक्ष्मके प्रत्येक और साधारणकी अपेक्षा अयश कीर्तिके साथ दो भङ्ग होते हैं। इस प्रकार छह भग तो ये हुए । तथा वैक्रिय शरीरको करनेवाला वादर वायुकायिक जीव जब शरीर पर्याप्तिसे पर्याप्त हो जाता है तब उसके २४ प्रकृतियोमें पराघातके मिलाने पर पच्चीस प्रकृतियोंका उदय होता है। इसलिये एक भङ्ग इसका हुआ। इस प्रकार पच्चीस प्रकृतिक उदयस्थानमे सब मिलकर सात भङ्ग होते हैं। तदनन्तर प्राणापान पर्याप्तिसे पर्याप्त हुए जीवके पूर्वोक्त २५ प्रकृतियोमे उच्छासके मिलानेपर छब्बीस प्रकृतिक उदयस्थान होता है। यहाँ भी पहलेके समान छह भग होते हैं। अथवा शरीर पर्याप्तिसे पर्याप्त हुए जिस जीवके उच्छासका उदय न होकर आतप और उद्योनमेंसे किसी एकका उदय होता है उसके छब्बीस प्रकृतिक उदयस्थान प्राप्त होता है। यहाँ भी छह भङ्ग होते हैं। यथा-आतप और उद्योतका उदय वादरके ही होता है, सूक्ष्मके नहीं। अत इनमेसे उद्योतसहित वादरके प्रत्येक और साधारण तथा यश कीर्ति और अयश कीर्ति इनकी अपेक्षा चार भन्न हुए। तथा आतप सहित प्रत्येकके यश कीर्ति और अयश कीति इनकी अपेक्षा दो भग हुए। इस प्रकार कुल छह भङ्ग हुए। आतपका उदय वादर पृथ्वीकायिकके ही होता है पर उद्योतका उदय वनस्पतिकायिकके भी होता है। तथा वादर वायुकायिकके वैक्रिय शरीरको करते समय उच्छास पर्याप्तिसे पर्याप्त होनेपर २५ प्रकृतियोमें उच्छासके मिलानेपर २६ प्रकृतिक उदयस्थान होता है, अत एक यह भग हुआ। इतनी विशेषता है कि अग्निकायिक और वायुकायिक जीवोके आतप उद्योत और यश कीर्तिका उदय नहीं होता। इस प्रकार २६ प्रकृतिक उदयस्थान मे कुल भंग १३ होते हैं। तथा प्राणापान पर्याप्तिसे पर्याप्त जीवके