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नामकर्मके उदयस्थान
१३९ 'अव नामकर्मके उदयस्थानोका कथन करते हैंवीसिगवीसा चउवीसगाइ एगाहिया उ इगतीसा। उदयहाणाणि भवे नव अह य हुँति नामस्से ॥२६॥ अर्थ-नाम कर्मके २०, २१ प्रकृतिक और २४ प्रकृतिक से लेकर ३१ प्रकृतिक तक ८ तथा नौ प्रकृतिक और आठ प्रकृतिक ये बारह उदयस्थान होते हैं।
विशेपार्थ- इस गाथामें नामकर्मके उदयस्थान गिनाये हैं। आगे उन्ही का विवेचन करते हैं-एकेन्द्रिय जीवके २१, २४, २५, २६ और २७ ये पाँच उदयस्थान होते हैं। सो यहाँ तैजस, कार्मण,अगुरुलघु, स्थिर,अस्थिर, शुभ, अशुभ, वर्णादि चार और निर्माण ये वारह प्रकृतियाँ उदयकी अपेक्षा ध्रुव हैं, क्योंकि
तेरहवें गुणस्थान तक इनका उदय सबके होता है। अब इनमें तिर्यंचगति, तिथंचगत्यानुपूर्वी, स्थावर, एकेन्द्रिय जाति, वादर सूक्ष्ममेसे कोई एक, पर्याप्त और अपर्याप्तमेंसे कोई एक, दुर्भग अनादेय तथा यश.कीर्ति और अयश.कीर्ति मेंसे कोई एक इन नौ प्रकृतियोके मिला देने पर इक्कीस प्रकृतिक उदस्थान होता है। यह उदयस्थान भवके अपान्तरालमें विद्यमान एकेन्द्रियके होता है। इस उदयस्थानमे पॉच भङ्ग होते है। जो इस प्रकार हैंवादर अपर्याप्तक, वादर पर्याप्तक, सूक्ष्म अपर्याप्तक और सूक्ष्म पर्याप्तक । सो ये चारो भङ्ग अयश कीर्ति के साथ कहना चाहिये।
(१) 'अडनववीसिगवीसा चवीसेगहिय जाव इगितीसा। चठगइएसु बारस उदयहाणाइ नामस्स ॥' पञ्च० सप्त० गा० ७३ । 'वीस इगिचठवीस तत्तो इकितीसमो ति एयधिय । उदयट्ठाणा एवं णव अट्ठ य होति ग्रामस्स ।' --गो० कर्म गा० ५६२ ।