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नामकर्मके उदयस्थान
१४३ है। यहाँ भी पहलेके समान तीन भग होते हैं। तदनन्तर शरीर पर्याप्तिसे पर्याप्त हुए दोइन्द्रिय जीवके पूर्वोक्त २६ प्रकृतियोमे अप्रशस्त विहायोगति और पराघात इन दो प्रकृतियोके मिला देनेपर २८ प्रकृतिक उदयस्थान होता है । यहाँ यश कीर्ति और अयश कीर्तिकी अपेक्षा दो भङ्ग होते हैं। इसके अपर्याप्तकका उदय नहीं होता अत उसकी अपेक्षा भङ्ग नहीं कहे। तदनन्दर श्वासोच्छ्रास पर्याप्तिसे पर्याप्त होनेपर पूर्वोक्त २८ प्रकृतियोमें उच्छास प्रकृतिके मिलानेपर २९ प्रकृतिक उदयस्थान होता है। यहाँ भी यश कीर्ति और अयश कीर्तिकी अपेक्षा दो भङ्ग होते है । अथवा शरीर पर्याप्तिसे पर्याप्त हुए जीवके उद्योतका उदय होनेपर उच्छासके बिना २९ प्रकृतिक उदयस्थान होता है। यहाँ भी यश-कीर्ति और अयश कीर्तिकी अपेक्षा दो भङ्ग प्राप्त होते है। इस प्रकार २९ प्रकृतिक उदयस्थानमें कुल चार भङ्ग हुए। तदनन्तर भाषा पर्याप्तिसे पर्याप्त हुए जीवके उच्छ्रास सहित २९ प्रकृतियोंमे सुस्वर
और दु स्वर इन दोमेसे किसी एकके मिला देने पर ३० प्रकृतिक उदयम्थान होता है । यहाँ पर सुस्वर और दु स्वर तथा यश.कीर्ति
और अयश कीर्ति के विकल्पसे चार भङ्ग होते है। अथवा प्राणापान पर्याप्तिसे पर्याप्त हुए जीवके स्वरका उदय न होकर, यदि उसके स्थानमें उद्योतका उदय हो गया तो भी ३० प्रकृतिक उदयस्थान प्राप्त होता है। यहाँ यश कीर्ति और अयश कीर्तिके विकल्पसे दो ही भग प्राप्त होते हैं। इस प्रकार ३० प्रकृतिक उदयस्थानमे कुल छह भग हुए । तदनन्तर स्वरसहित ३० प्रकृतिक उदयस्थानमे उद्योतके मिलाने पर इकतीस प्रकृतिक उदस्यथान होता है। यहाँ सुस्वर और दु.स्वर तथा यश कीर्ति और अयश कीर्तिके विकल्पसे चार भंग होते हैं। इस प्रकार दोइन्द्रिय जीवोंके छह उदयस्थानोके कुल ३+३+२+४+६+४%D२२ भग होते हैं।