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नामकर्मके उदयस्थान
१४७ अनादेयमसे किसी एकका तथा यश कीर्ति और अयश.कीर्ति मेंसे किसी एकका उदय होनेके कारण २x२x२८ भग प्राप्त होते है। तदनन्तर शरीर पर्याप्तिसे पर्याप्त हुए जीवके पराघात और प्रशस्त विहायोगतिके मिला देने पर २७ प्रकृतिक उदयस्थान होता है। यहाँ भी पहलेके समान ८ भग प्राप्त होते हैं। तदनन्तर प्राणापान पर्याप्तिसे पर्याप्त हुए जोरके उच्छ्रास के मिला देने पर २८ प्रकृतिक उदयस्थान हाता है। यहाँ भा पहलेके समान आठ भग होते है। अथवा शरीर पर्याप्तिसे पर्याप्त हुए जीवके यदि उद्योत का उदय हो तो भा २८ प्रकृतिक उत्यस्थान हाता है। यहाँ भो आठ भग होते हैं। इस प्रकार २८ प्रकृतिक उदयस्थानके कुल भग १६ हुए । तदनन्तर भापा पयाप्तिप्ते पर्याप्त हुए जीवके उच्छ्राम सहित २८ प्रकृतियोमे सुस्वरके मिलाने पर २९ प्रकृतिक उदयस्थान होता है। यहाँ भी आठ भग होते हैं। अथवा प्राणापान पर्याप्रिसे पर्याप्त हुए जायके उच्छास सहित २८ प्रकृतियोम उद्यातके मिलाने पर भी २९ प्रकृतिक उदयस्थान होता है। इसके भी आठ मग हाते हैं। इस प्रकार २९ प्रकृतिक उदयस्थानके कुल भग १६ हुए । तदनन्तर सुस्वर सहित २९ प्रकृतिक उदयस्थानमें उद्योतके मिलाने पर तोस प्रकृतिक उदयस्थान होता है। इसके भी आठ भग होते हैं । इस प्रकार वैक्रियशरीरको करनेवाले पचेन्द्रिय तिर्यचके कुल उदयस्थान पाँव और उनके कुल भग ८+८+१+१६+८=५६ होते है। इन भगोंको पहलेके ४९.६ भगोमें मिलाने पर सब तिर्यंचोके कुल उदयस्थानोके ४९६२ भग होते हैं।
सामान्य मनुष्योके २१, २६, २८, २९ और ३० ये पाँच उदयस्थान हाते हैं। तियच पचेन्द्रियोके इन उग्रस्थानोका जिस प्रकार क्थन कर आये हैं उसी प्रकार यहाँ मनुष्योके भो करना