________________
1
नामकर्म के बन्धस्थान
१३७
होता है । यह बन्धस्थान इनके अतिरिक्त अन्य प्रकारसे नहीं प्राप्त होतात इसके कुल नौ भढ्न हुए यह सिद्ध हुआ । उनतीस प्रकृतिक बन्धस्थानके ९२४८ भट्ट होते हैं, क्योकि तिर्यच पचेन्द्रिय के योग्य उनतीस प्रकृतिक वन्धस्थानके ४६०८ भग होते है ।
मनुष्य गतिके योग्य उनतीस प्रकृतिक वम्थस्थानके भी ४६०८ भङ्ग होते हैं । और ढोइन्द्रिय, तेइन्द्रिय और चौइन्द्रियके योग्य और तीर्थकर सहित देवगतिके योग्य उनतीस प्रकृतिक वन्धस्थानके आठ आठ भाग होते हैं। इस प्रकार उक्त भङ्गोको मिलाने पर २९ प्रकृतिक वन्धस्थानके कुल भग ४६०८ +४६०८+८+८+८ +८=९२४८ होते हैं । ३० प्रकृतिक वन्धस्थानके कुल भग ४६४१ होते हैं। क्योंकि तिर्यंचगतिके योग्य तीसका वध करनेवालेके ४६०८ भंग होते हैं। ढोइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चौइन्द्रिय और मनुष्यगतिके योग्य तीसका बन्ध करनेवाले जीवोके आठ आठ भग होते है और आहारकके साथ देवगतिके योग्य तीसका बन्ध करनेवालेके एक भग होता है । इस प्रकार उक्त भगोको मिलानेपर ३० प्रकृतिक बन्धस्थानके कुल भंग ४६०८+८+८+८+८+१= ४६४१ होते है । तथा इक्तीस प्रकृतिक वन्धस्थानका और एक प्रकृतिक वन्धस्थानका एक एक भाग होता है यह स्पष्ट ही है । इस प्रकार इन सब बन्धस्थानोके कुल भङ्ग १३९४५ होते हैं । यथा -४ + २५ + १६+९+९२४८ + ४६४१ + १ + १ = १३९४५ | इस प्रकार नामकर्मके वन्धस्थान और उनके कुल भङ्गो का कथन
समाप्त हुआ ।