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सप्ततिकाप्रकरण अनादेयमेसे कोई एक, यशःकीर्ति और अयश कीर्ति से कोई एक तथा निर्माण इन उनतीस प्रकृतियोका बन्ध होता है, अतः इनका समुदाय रूप एक उनतीस प्रकृतिक वन्धस्थान कहलाता है। यह बन्धस्थान पर्याप्त तियेच पचेन्द्रियके योग्य प्रकृतियोको वाधनेवाले चारो गतिके मिथ्यादृष्टि जीवके होता है । यदि इस बन्धस्थानका बन्धक सास्वादनसम्यग्दृष्टि होता है तो उसके प्रारम्भके पांच सहननोमेसे किसी एक संहननका और प्रारम्भके पांच सस्थानोमें से किसी एक संस्थानका बन्ध होता है, क्योकि इंडसंस्थान
और सेवात सहननको सास्वादनसम्यग्दृष्टि नहीं बांधता है ऐसा नियम है। यथा
'हुड असंपत्तं व सासणो ण वधइ।'
अर्थात् 'सास्वादन सम्यग्दृष्टि जीव हुंडसंस्थान और असंप्राप्त संहननका वन्ध नहीं करता।' __इस उनतीस प्रकृतिक बन्धस्थानमे सामान्यसे छह संहननोमे से किसी एक सहननका, छह सस्थानोमेंसे किसी एक सस्थानका प्रशस्त और अप्रशस्त विहायोगतिमेंसे किसी एक विहायोगतिका, स्थिर और अस्थिरमेसे किसी एकका, शुभ और अशुभमेसे किसी एकका, सुभग और दुर्भगमेंसे किसी एकका, सुस्वर और दु स्वरमें से किसी एकका, आदेय और अनादेयमेंसे किसी एकका तथा यशःकीर्ति और अयशःकीर्तिमेंसे किसी एकका वन्ध होता है अत इन सब संख्याओको परस्पर गुणित कर देने पर ४६०८ भंग प्राप्त होते हैं। यथा-६४६x२x२x२x२x२x२x२ =४६०८ । जैसा कि पहले लिख आये है कि इस स्थानका बन्धक सास्वादन सम्यग्दृष्टि भी होता है किन्तु इसके पाच संहनन और पांच सस्थानका ही बन्ध होता है, इसलिये इसके ५४५४२४२ ४२x२x२x२x२=३२०० भंग प्राप्त होते हैं। किन्तु इनका