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सप्ततिकाप्रकरण तेवीस परणवीसा छब्बीसा अवीस गुणतीसा। तीसेगतीसमेकं बंधट्टाणाणि णामस्स ।। २४ ॥ अर्थ-नाम कर्मके तेईस प्रकृतिक, पञ्चीस प्रकृतिक, छब्बीस प्रकृतिक, अट्ठाईस प्रकृतिक, उनतीस प्रकृतिक, तीस प्रकृतिक, इकतीस प्रकृतिक और एक प्रकृतिक ये आठ बन्धस्थान होते हैं।
विशेपार्थ-इस गाथाम नाम कर्मके तेईस प्रकृतिक आदि आठ वन्धस्थान होते हैं यह बतलाया है। आगे इन्हींका विस्तारसे विचार किया जाता है-वैसे तो नामकर्मकी उत्तर प्रकृतियाँ तिरानवे है पर उनमेसे एक माथ कितनी प्रकृतियोका बन्ध होता है, इसका विचार इन आठ वन्धस्थानोमे किया है। उसमें भी कोई तिथंचगतिके, कोई मनुष्यगतिके, कोई देवगतिके और कोई नरक गतिके प्रायोग्य वन्धस्थान है। और इससे उनके अनेक अवान्तर भेट भी हो जाते है अत. आगे इन अवान्तर भेदोके साथ ही विचार करते हैं-तिथंचगतिके योग्य बन्ध करनेवाले जीवके सामान्यसे २३,२५,२६,२९ और ३० ये पॉच बन्धस्थान होते है। उनमें भी एकेन्द्रियके योग्य प्रकृतियोंका वन्ध करनेवाले जीवके २३,
(१) 'गामस्स कम्मरस अट्ट हाणाणि एकतीसाए तीसाए एगुणतीसाए अट्ठवीसाए छब्बीसाए पणुवीसाए तेवीसाए एकिस्से हाणं चेदि ।
-जो० चू० ठा० सू० ६० । 'तेवीसा पणुत्रीसा छब्बीसा अहवीस गुणतीसा । तीसेगतीस एगो वधढाणाइ नामेऽह ॥--पञ्चसं० सप्तति० गा० ५५ । तेवीसं पणवीस इन्चीस अहवीसमुगतीस । तीसेकतीसमेव एको वधो दुसेडिम्मि '
-गो० कर्म• गा० ५२। (२) 'तिरिक्खगदिणामाए पंच हाणाणि तीसाए एगूणतीसाए छन्त्रीसाए पणुवीसाए तेवोगाए हाणं चेदि।'-जी० चू० हा सू० ६३ ।