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वन्धस्थाननिक्के संवेध भग १०९ जानेपर सत्ताईस प्रकृतिक सत्त्वस्थान होता है और सम्यग्मिथ्यात्वकी उद्वलना हो जाने पर छब्बीस प्रकृतिक सत्त्वस्थान होता है। तथा छब्बीस प्रकृतिक सत्त्वस्थान अनादि मिथ्यादृष्टि के भी होता है। इसी प्रकार अनन्तानन्धीके उदयसे रहित नौप्रकृतिक उदयस्थानमें तो एक अट्ठाईस प्रकृतिक सत्तास्थान ही होता है किन्तु जो नौ प्रकृतिक उदयस्थान अनन्तानुबन्धीके उदयसे युक्त है उसमें तीनो सत्तास्थान बन जाते है। तथा दस प्रकृतिक उदयस्थान, जिसके अनन्तानुबन्धीका उदय होता है, उसीके होता है, अन्यथा दस प्रकृतिक उदयस्थान ही नहीं बनता, अत इसमें २८, २७ और २६ प्रकृतिक तीनो सत्तास्थान प्राप्त हो जाते हैं। __ इक्कीस प्रकृतिक वन्धस्थान के समय सत्त्वस्थान एक अट्ठा. इस प्रकृतिक ही होता है, क्योकि इक्कीस प्रकृतिक वन्धस्थान मास्वादन सम्यग्दृष्टिके ही होता है और सास्वादन सम्यक्त्व उपशमसम्यक्त्वसे च्युत हुए जीवके ही होता है किन्तु ऐसे जीवके दर्शनमोहनीयके तीनो भेटोका सत्त्व अवश्य पाया जाता है क्यो कि यह जीव सम्यग्दर्शन गुणके निमित्तसे मिथ्यात्वके तीन भाग कर देता है जिन्हे क्रमश मिथ्यात्व, सम्यग्मिथ्यात्व और सम्यक्त्व यह सज्ञा प्राप्त होती है। इसलिये इसके दर्शनमोहनीयके तीन भेदोका सत्त्व नियमसे पाया जाता है। यहाँ उदयस्थान सात प्रकृतिक, आठ प्रकृतिक और नौ प्रकृतिक ये तीन होते है। अत सिद्ध हुआ कि इक्कोस प्रकृतिक बन्धस्थानके समय तीन उदय स्थानोके रहते हुए एक अट्ठाईस प्रकृतिक ही सत्त्वस्थान होता है।
सत्रह प्रकृतिक वन्धस्थान के समय सत्त्वस्थान छह होते हैं२८, २७, २४, २३, २२ और २१ प्रकृतिक । सत्रह प्रकृतिक वन्धस्थान सम्यग्मिथ्यादृष्टि और सम्यग्दृष्टि इन दो गुणस्थानोमे होता है। इनमेंसे सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोके तीन