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निर्देशमा प्रतिक बनाउढयस्थान
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सप्ततिकाप्रकरण इस प्रकार तियेचोकी अपेक्षा विचार किया अव मनुष्योंकी अपेक्षा विचार करते हैं--
जो देशविरत मनुष्य हैं उनके पाँच प्रकृतिक उदयस्थानके रहते हुए २८, २४ और २१ ये तीन सत्त्वस्थान होते हैं। छह प्रकृतिक और सात प्रकृतिक उदयस्थानके रहते हुए प्रत्येकमें २८,२४,२३,२२ और २१ ये पॉच सत्त्वस्थान होते हैं। तथा आठ प्रकृतिक उदयस्थानके रहते हुए २८,२४,२३ और २२ ये चार स्थान होते हैं। उदयस्थानगत प्रकृतियोको ध्यानमे रखनेसे इनके कारणोका निश्चय सुगमतापूर्वक किया जा सकता है अतः यहाँ अलग अलग विचार न करके किस उदयस्थानमें कितने सत्त्वस्थान होते हैं इसका' निर्देशमात्र कर दिया है।
नौ प्रकृतिक वन्धस्थान प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत जीवोंके होता है। इनके उदयस्थान चार होते है ४,५,६ और ७ प्रकृनिक । सो चार प्रकृतिक उदयस्थानके रहते हुए तो प्रत्येक गुणस्थानमें २८,२४ और २१ ये तीन ही सत्त्वस्थान होते हैं, क्योकि यह उदयस्थान उपशमसम्यग्दृष्टि और क्षायिकसम्यग्दृष्टिके ही प्राप्त होता है। पाँच, प्रकृतिक और छह प्रकृतिक उदयस्थानके .रहते हुए पाँच पाँच सत्त्वस्थान होते है, क्योकि ये 'उदयस्थान तीनो प्रकारके सम्यग्दृष्टि जीवोके सम्भव हैं। किन्तु सात प्रकृतिक 'उदयस्थान वेदकसम्यग्दृष्टि जीवोके ही होता है अत. यहाँ २१ प्रकृतिक सत्त्वस्थान सम्भव न होकर शेप चार ही होते हैं।
पाँच प्रकृतिक और चार प्रकृतिक बन्धस्थानमें छह छह सत्त्वस्थान होते हैं । अब इसका स्पष्टीकरण करते है-पाँच प्रकृतिक बन्धस्थान उपशमणि और क्षपकश्रेणिमें अनिवृत्तिबादर जीवके पुरुषवेदके बन्धकाल तक होता है और पुरुपवेद्रके बन्ध समय तक छह नोकवायोती सत्व पाया ही जाता है अत.. पाँच प्रकृतिक