________________
वन्धस्थानत्रिकके सवेधभंग
११५
चाले जीवके ही होते हैं, परन्तु तिर्यच क्षायिक सम्यग्दर्शनको नहीं उत्पन्न करते हैं । व्रती अवस्थामे इसे तो केवल मनुष्य ही उत्पन्न करते हैं ।
शका - यद्यपि यह ठीक है कि तिर्यचोके २३ प्रकृतिक सत्त्वस्थान नहीं होता तथापि जब मनुष्य क्षायिक सम्यग्दर्शनको उत्पन्न करते हुए या उत्पन्न करके तिर्यचोमें उत्पन्न होते है तब तिर्यचोके भी २२ और २१ प्रकृतिक सत्त्वस्थान पाये जाते हैं, अत यह कहना युक्त नहीं है कि तिर्यंचोके २२ आदि सत्त्वस्थान नहीं होते ?
समाधान -- द्यपि यह ठीक है कि क्षायिक सम्यक्त्वको उत्पन्न करनेवाला २२ प्रकृतियोंकी सत्तावाला जीव या क्षायिक सम्यग्दृष्टि जीव मरकर तिर्यचोमे उत्पन्न होता है किन्तु यह जीव संख्यात वर्ष की आयुवाले तिर्यचो में उत्पन्न न होकर असंख्यात वर्ष की आयुचाले तिर्यचॉम ही उत्पन्न होता है और इनके देशविरति होती नहीं, और देशविरतिके न होनेसे उनके तेरह प्रकृतिक वन्धस्थान नहीं पाया जाता । परन्तु यहाँ तेरह प्रकृतिक वन्धस्थानमे सत्त्वस्थानोंका विचार किया जा रहा है अतः ऊपर जो यह कहा है कि तिर्यंचोके २२ आदि सत्रस्थान नहीं होते सो वह १३ प्रकृतिक बन्धस्थानकी अपेक्षासे ठीक ही कहा है। चूर्णिमे भी कहा है
'एगबीसा तिरिक्खेसु सजयासजएसु न संभवइ । कीं ? भरणइ - सखेज्जवामाउएस तिरिक्खेसु खाइगसम्महिठ्ठी न उववज्जर, असखेज्जवासाउएसु उववज्जेज्जा, तस्स ढेसविरई नत्थि ।'
अर्थात 'तिर्यच सयतासयत के २१ प्रकृतिक सत्त्वस्थान नही होता, क्योंकि क्षायिक सम्यग्दृष्टि जीव संख्यात वर्षकी आयुवाले तिर्यची में नहीं उत्पन्न होता है। हाँ असंख्यात वर्ष की आयुवाले तिचीमें उत्पन्न होता है पर उनके देशविरति नहीं होती ।'