________________
बन्धस्थानन्त्रिकके संवेध भंग
११७ चन्धस्थानमें पॉच आदि सत्त्वस्थान नहीं होते यह स्पष्ट ही है । अव रहे शेप सत्त्वस्थान सो उपशमश्रेणिकी अपेक्षा तो यहाँ २८,२४ और २१ ये तीनं सत्त्वस्थान पाये जाते हैं, क्योकि उपशमणि मे ये तीन सत्त्वस्थान होते है ऐसा आगम है । तथा क्षपकरण इसके २१, १३, १२ और ११ इस प्रकार चार सत्त्वस्थान होते हैं । जिस अनिवृत्तिवादर जीवने आठ कषायोका तय नही किया उसके २१ प्रकृतिक सत्त्वस्थान होता है । आठ कपायोके क्षय हो जाने पर तेरह प्रकृतिक सत्त्वस्थान होता है । फिर नपुसकवेदका क्षय हो जाने पर वारह प्रकृतिक सत्त्वस्थान होता है और स्त्रीवेदका क्षय हो जाने पर ग्यारह प्रकृतिक सत्त्वस्थान होता है। यहाॅ इसके आगे सत्त्वस्थान नहीं हैं इसका कारण पहले ही बतला दिया है । इस प्रकार पाँच प्रकृतिक वन्धस्थानमे २८,२४,२१,१३, १२ और ११ ये छ सत्त्वस्थान होते हैं यह सिद्ध हुआ । श्रव चार प्रकृतिक वन्धस्थानमें जो छह सत्त्वस्थान होते है इसका स्पष्टीकरण करते हैं । यह तो सुनिश्चित है कि चार प्रकृतिक बन्धस्थान भी दोनो श्रेणियों मे होता है और उपशमश्रेणिमे केवल २८, २४ आंर २१ ये तीन सत्त्वम्थान होते हैं, अतः यहाँ उपशमश्रेणिकी अपेक्षा ये तीन सत्त्वस्थान प्राप्त हुए । अव रहा चपकश्रेणिकी अपेक्षा विचार सो ऐसा नियम है कि जो जीव नपुसक वेदके उदयके साथ क्षपकश्रेणि पर चढ़ता है वह नपुसकवेट और स्त्रीवेदका क्षय एक साथ करता है और इसके इसी समय पुरुषवेदकी वन्धव्युच्छित्ति हो जाती है। तदनन्तर इसके पुरुषवेद
र हास्यादि छहका एक साथ क्षय होता है। यदि कोई जीव स्त्रीवेदके उदयके साथ क्षपकश्रेणि पर चढ़ता है तो यह जीव पहले नपुंसकवेदका क्षय करता है । तदनन्दर अन्तर्मुहूर्त कालमें स्त्री वेदका क्षय करता है । फिर पुरुषवेद और हास्यादि छहका
1