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वन्धस्थानोमें उदयस्थानोके भंग
यहाँ अव उनकी समुच्चयरूप संख्या वतलाई है। जिसका खुलासा इस प्रकार है - इस प्रकृतिक उदयस्थानमें भगोकी एक चौवीसी होती है यह स्पष्ट ही है, क्योकि वहाँ और प्रकृतिविकल्प सम्भव नहीं । नौ प्रकृतिक उदयस्थानमे भगोकी कुल छह चौवीसी होती हैं । यथा - वाईस प्रकृतिक वन्धस्थानके समय जो नौ प्रकृतिक उदयस्थान होता है उसकी तीन चौवीसी, इक्कीस प्रकृतिक बन्धस्थानके समय जो नौ प्रकृतिक उदयस्थान होता है उसके भगोकी एक चौवीसी, मिश्र गुणस्थानमे सत्रह प्रकृतिक बन्धस्थानके समय जो नौ प्रकृतिक उदयस्थान होता है उसके भगोकी एक चौवीसी और चौथे गुणस्थान में सत्रह प्रकृतिक वन्धके समय जो नौ प्रकृतिक उदयस्थान होता है उसके भगोको एक चौबीसी इस प्रकार नौ प्रकृतिक उदयस्थानके भगोकी कुल छह चौबीसी हुई। आठ
प्राप्त होते हैं और दूसरे पाठके अनुसार मतान्तरसे दो प्रकृतिक उदयस्थानमें २४ भग प्राप्त होते हैं। मलयगिरि श्राचार्यने अपनी टोकामें इसी अभिप्रायकी पुष्टि की है । यथा
'द्विकोदये चतुर्विंशतिरेका भङ्गकानाम्, एतच्च मतान्तरेणोकम् | अन्यथा स्वमते द्वादशैव भङ्गा वेदितव्या ।'
अर्थात् दो प्रकृतिक उदयस्थानमें चौवीस भग होते हैं । सो यह कथन अन्य श्राचायोंके अभिप्रायानुसार किया है । श्रन्यथा स्वमतसे तो दो प्रकृतिक उदयस्थानमें कुल बारह भग हो होते हैं ।
इस सप्ततिका प्रकरणकी गाथा १६ में पाँच प्रकृतिक बन्धस्थान के समय दो प्रकृतिक उदयस्थान और गाथा १७ में चार प्रकृतिक बन्धस्थान के समय एक प्रकृतिक उदयस्थान बतलाया है । इससे जो स्वमत से १२ और मतान्तरसे २४ भंगका निर्देश किया है उसकी ही पुष्टि होती है । पचसप्रह सप्ततिकाप्रकरण और कर्मकाण्डमें भी इन मतभेदों का निर्देश किया है ।