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आठ मूल कर्मोके सवेध भग अट्टविहसत्तछबंधगेसु अव उदयसंताई। एगविहे तिविगप्पो एगविगप्पो अवंधम्मि ॥३॥
अर्थ-आठ, सात और छह प्रकारके कर्मोंका वन्ध होते समय उदय और सत्ता आठो कर्मोंकी होती है। केवल वेदनीयका वन्ध होते समय उदय और सत्तोकी अपेक्षा तीन विकल्प होते हैं, तथा वन्धके न होने पर उदय और सत्ताकी अपेक्षा एक ही विकल्प होता है।
विशेपार्थ-मिश्र गुणस्थानके विना अप्रमत्तसयत गुणस्थान तकके जीव आयुवन्धके समय आठो कर्मोंका बन्ध कर सकते हैं। अनिवृत्तिवादरसम्पराय गुणस्थान तकके जीव आयु विना सात कर्मोंका वध करते है और सूक्ष्म सम्पराय सयत जीव आयु और मोहनीय कर्मके विना छह कर्मोंका बन्ध करते हैं। ये सब उपर्युक्त जोत्र सराग होते है और सरागता मोहनीय कर्मके उदयसे प्राप्त होती है। तथा मोहनीय का उदय रहते हुए उसको सत्ता अवश्य पाई जाती है, अत. आठ, सात और छह प्रकारके कर्मोंका बन्ध होते समय उदय व सत्ता आठो कर्मों की होती है, यह सिद्ध हुआ। इस प्रकार इस कथनसे नोन भग प्राप्त होते हैं । जो निम्न प्रकार है-(१) आठ प्रकृतिक बन्ध,आठ प्रकृतिक उदय और आठ प्रकृतिक सत्त्व । (२) सात प्रकृतिक बन्ध, आठ प्रकृतिक उदय और आठ प्रकृतिक सत्त्व तथा (३) छह प्रकृतिक वन्ध आठ प्रकृतिक उदय और आठ प्रकृतिक सत्त्व ।
(१) सत्तहछबवेसु उदा अट्टह होइ पयडीण। सत्ता चउण्हं ना उदश्रो सायस्स बन्धम्मि ॥-पच्चस० सप्तति० गा० ५ ।
'अट्टविहसत्तछब्वत्रगेसु अट्टेव उदयकम्मसा । एयविहे तिवियप्पो एयवियप्पो अवधम्मि ॥'-गो०-कर्म० गा० ६२० ।