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वन्धस्थानोंमें उदयस्थान
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से होता है । यहाँ भंग चौवीस होते हैं । यथा -- क्रोध, मान, माया और लोभ इन चारोका उदय एक साथ नहीं होता, क्योकि उदयकी अपेक्षा ये चारो परस्पर विरोधिनी प्रकृतियाँ हैं, अतः क्रोधादिकके उदयके रहते हुए मानादिकका उदय नहीं होता । परंतु क्रोधका उदय रहते हुए उससे नीचे के सब क्रोधो का उदय अवश्य होता है । जैसे, अनन्तानुवन्धी क्रोधका उदय रहते हुए चारो क्रोधोका उदय एकसाथ होता है । अप्रत्याख्यानावरण क्रोधका उदय रहते हुए तीन क्रोधोंका उदय एकसाथ होता है । प्रत्याख्यानावरण क्रोधका उदय रहते हुए दो क्रोधोका उदय एकसाथ होता है तथा सञ्चलन क्रोधका उदय रहते हुए एक ही क्रोधका उदय होता है । इस हिसाब से प्रकृत सात प्रकृतिक उदयस्थान मे प्रत्याख्याना - वरण क्रोध आदि तीन क्रोधों का उदय होता है । इसी प्रकार अप्रत्याख्यानावरण मानके उदय के रहते हुए तीन मानका उदय होता है । अप्रत्याख्यानावरण माया का उदय रहते हुए तीन माया का उदय होता है और अप्रत्याख्यानावरण लोभका उदय रहते हुए तीन लोभका उदय होता है । जैसा कि हम ऊपर बतला आये हैं तदनुसार ये क्रोध, मान, माया और लोभके चार भंग स्त्री वेद के उदय के साथ होते हैं। और यदि स्त्रो वेदके उदय के स्थानमें पुरुष वेदका उदय हुआ तो पुरुपवेदके उदयके साथ होते हैं । इसी प्रकार नपुसक वेढ़के उदयके साथ भी ये चार भग प्राप्त होते हैं। इस प्रकार मिलकर बाहर भग हुए । जो हास्य और रतिके उदयके साथ भी होते हैं । और यदि हास्य तथा रतिके स्थानमे शोक और अरति का उदय हुआ तो इनके साथ भी प्राप्त होते हैं । इस प्रकार वारह को दोसे गुणित करने पर चौवीस भग हुए । इन्हीं भगो को दूसरे प्रकारसे यों भी गिन सकते हैं कि हास्य रति युगल के साथ स्त्री वेदका एक भंग तथा शोक अरति युगल के साथ स्रो वेदका
ये सब