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सप्ततिकाप्रकरण देवगतिमें आयुकर्मको उक्त विशेषताओका कोष्ठक
[११]
मम
काल , बन्ध उदयस्था० सत्त्वस्था० गुणस्थान
श्रवन्नकाल
.
१, २, ३. ४
२ । वन्धकाल
| ति०
।
दे०
दे० ति०
१,२
। ३
वन्धकाल
।
म.
दे०
दे० म०
१, २, ४
४
उप० वन्धका०
०
। दे०
दे०तिः दे० । १, २, ३, ४
५
उप वन्धका
दे० म०
१, २, ३, ४
तिर्यच गतिमें अवन्धकालमै तिर्यंचायुका उदय और तिर्यचायुका सत्त्व यह एक भंग होता है जो प्रारम्भके पांच गुणस्थानी मे पाया जाता है, क्योंकि तिर्यंचगतिमे शेष गुणस्थान नहीं होते। चन्धकालम (१) नरकायुका वन्ध तिर्यंचायुका उदय और नरक-तियंचायुका सत्त्व (२) नियंचायुका वन्ध तिथंचायुका उदय और तियेच-तियंचायुका सत्त्व (३) मनुष्यायुका वन्ध,