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आयुकर्मके संवैध भंग होते हैं उस प्रकार देव और नारकी जीव मरकर केवल तिर्यच और मनुष्यगतिमें ही उत्पन्न होते है शेप मे नहीं। नरकगतिमे आयुकर्मको उक्त विशेषताओका कोष्ठक
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क्रम न० काल
कमन
काल
वन्ध
उदय
सत्त्व
गुणस्थान
अवन्धकाल
.
। न० । न०
१, २, ३, ४
बन्धकाल
ति.
न०
न० ति.
बन्धकाल
म० । न०
न० म०
४
उप० बन्धकाल
.
न०
न० ति०] १, २, ३, ४
५
उप० वन्धकाल
.
न०
न०म०
१, २, ३, ४
अवन्ध, वन्ध और उपरतबन्धकी अपेक्षा नरकगति में जिस प्रकार पांच भग बतलाये हैं उसी प्रकार देवगतिमें भी जानना । चाहिये । किन्तु नरकायुके स्थानमे सर्वत्र देवायु कहना चाहिये।
यथा-देवायुका उदय देवायुका सत्त्व इत्यादि ।