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सप्ततिकाप्रकरण सकलित है अतः अयोगिकेवली गुणस्थानके अन्तिम समयमे इसका निषेध किया । तथा सातवां भग अयोगिकेवली गुणस्थान के अन्तिम समयमे होता है, क्योंकि केवल उच्चगोत्रका उदय और उच्चगोत्रका सत्त्व अयोगिकेवली गुणस्थानके अन्तिम समयमें ही पाया जाता है, अन्यत्र नही । इस प्रकार गोत्रकर्मकी अपेक्षा कुल सवेधभग सात होते है। गोत्रकर्मके सवेधभंगो का ज्ञापक कोष्टक
[ १४ ]
भग। वन्ध
उदय
।
सत्व
गुणस्थान
१. नी०
नी०
नो०
नी०
नी० उ०
३
नी
। ____ट.
नी० उ०
४
उ.
नी.
नी. उ०
१, २, ३, ४,५
नी००१ से १० तक
उ०
| नी० १० ११,१२,१३ व १४० स०
उ०
उ० १४ का अन्तिम समय
(१) गोदे सचेव हॉति भंगा हु। मो० कर्म० गा० ६५१ ।
।