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सप्ततिकाप्रकरण अब मोहनीय कर्मके उदयस्थानोंका कथन करते हैंएक व दो व चउरो एत्तो एक्काहिया दसुक्कोसा। अोहेण मोहणिज्जे उदयहाणा नव हवंति ॥ ११ ॥
अर्थ—सामान्यसे मोहनीय कर्मके उदयस्थान नौ हैं-एक प्रकृतिक, दो प्रकृतिक, चार प्रकृतिक, पॉच प्रकृतिक, छ प्रकृतिक,. सात प्रकृतिक, आठ प्रकृतिक, नौ प्रकृतिक और दस प्रकृतिक ।
विशेषार्थ-पार्नुपूर्वी तोन हैं-पूर्वानुपूर्वी, पश्चादानुपूर्वी और यत्रतत्रानुपूर्वी। जो पदार्थ जिस क्रमसे उत्पन्न हुआ हो या जिस क्रमसे सूत्रकारके द्वारा स्थापित किया गया हो उसकी उसी क्रमसे गणना करना पूर्वानुपूर्वी है । विलोम क्रमसे अर्थात् अन्तसे लेकर आदि तक गणना करना पश्चातानुपूर्वी है, और जहाँ कहीसे अपने इच्छित पदार्थको प्रथम मानकर गणना करना यत्रतत्रानुपूर्वी है। वैसे तो आनुपूर्वीके दस भेद बतलाये हैं पर ये तीन भेद गणनानुपूर्वीके जानना चाहिये । यहाँ सप्ततिकाप्रकरण
(१) 'इगि दुग चड एगुत्तरभादसगं उदयमाहु मोहस्स । सजलणवेयहासरइभयदुगुलतिकसायदिही य ॥-पञ्च५० सप्तति० गा० २३ । 'एक्काइ जा दसण्हं तु। निगहोणाइ मोहे "॥'-कर्म. उदी० गा० २२॥ 'अत्थि एकिस्से पयडीए पवेसगो। दोण्हं पयडीण पवेसगो। तिण्ह पयढीणं पवेसगो णत्यि । चउण्ह पयहीण पवेसगो। एत्तो पाए गिरतरमत्थि जाव दवण्हं पयडीण पवेमगा ।। -काय चु. (वेदक अधिकार ) 'दस णव अट्ट य सत्त य छप्पण चत्तारि दोणि एक च । उदयट्ठाणा मोहे गाव चेत्र य होति णियमेण ॥-गो० कर्मः गा० ४७५ ॥
(२) 'गणणाणुपुष्वी तिविहा पगत्ता, तनहा-पुन्वाणुपुत्री पच्छाणुमुखी अणाणुपुत्री।-अनुयो० सू० ११६ । वि० भा० गा० ९४१ ।