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आयुकर्मके संवेध भंग वन्ध और उदयकी अपेक्षा आयुका एक प्रकृतिक वन्धस्थान और एक प्रकृतिक उदयस्थान होता है। किन्तु दो प्रकृतिक और एक प्रकृतिक इस प्रकार सत्त्व स्थान दो होते हैं। जिसने परभवसम्बन्धी आयुका वध कर लिया है उसके दो प्रकृतिक सत्त्वस्थान होता है और जिसने परभवसम्बन्धी आयुका वन्ध नहीं किया है उसके एक प्रकृतिक सत्त्वस्थान होता है। ___ आयु कर्मकी अपेक्षा तीन अवस्थाए होती हैं-(१) परभवसम्बन्धी आयु कर्मके वन्धकालसे पहलेकी अवस्था (२) परभवसम्बन्धी आयुके वन्धकालकी अवस्था और (३ ) परभवसम्बन्धी
आयुवन्धसे उत्तर कालकी अवस्था। इन्हीं तीनों अवस्थाओंको क्रमसे अवन्धकाल, वन्धकाल और उपरतवन्धकाल कहते हैं। इनमे से नारकियोके अवन्धकालमे नरकायुका उदय और नरकायुका सत्त्व यह एक भङ्ग होता है जो प्रारम्भके चार गुणस्थानोमें सम्भव है, क्योकि नरकमे शेष गुणस्थान नहीं होते। वन्धकालमें (१) तिर्यंचायुका बन्ध, नरकायुका उदय और तियंच-नरकायुका सत्त्व तथा (२) मनुष्यायुका वन्ध, नरकायुका उदय और मनुष्य-नरकायुका सत्त्व ये दो भङ्ग होते हैं। इनमे से पहला भङ्ग मिथ्यात्व और सास्वादन गुणस्थानमें होता है, क्योकि तिर्यंचायुका वन्ध दूसरे गुणस्थान तक ही होता है । तथा दूसरा भङ्ग मिथ्यात्व,
(१) 'एवमवंधे बंधे उवरदवधे वि होति भंगा हु । एकस्सेकम्मि भवे एकाउ पडि तये णियमा ॥-पो० कर्म० गा० ६४४।