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दर्शनावरण कर्मके संवेध भंग गुणस्थानके अन्तिम समय तक चार प्रकृतिक बन्ध, चार प्रकृतिक उदय और छह प्रकृतिक सत्त्व यह एक भग और होता है जो उपर्युक्त चार भंगोसे पृथक् है। इस प्रकार दर्शनावरणकी उत्तर प्रकृतियोंका यथासम्भव बन्ध रहते हुए कहॉ कितने भग सम्भव हैं इसका विचार किया।
अव उदय और सत्ताकी अपेक्षा दर्शनावरण कर्मके जहाँ जितने भग सम्भव हैं इसका विचार करते हैं। बात यह है कि उपशान्तमोह गुणस्थानमें दर्शनावरणकी सभी उत्तर प्रकृतिथोकी सत्ता रहती है और उदय विकल्पसे चार या पॉच का पाया जाता है, अत यहाँ (१) चार प्रकृतिक उदय और नौ प्रकृतिक सत्त्व या (२) पाँच प्रकृतिक उदय और नौ प्रकृतिक सत्त्व ये दो भग होते है। किन्तु क्षीणमोह गुणस्थानमे स्त्यानद्वित्रिकका अभाव है, क्योकि इनका क्षय क्षपक अनिवृत्तिकरणमे हो जाता है। दूसरे इसके उपान्त्य समयमे निद्रा और प्रचला का भी क्षय हो जाता है जिससे अन्तिम समयमे चार प्रकृतियोंका ही सत्व रहता है। तथा क्षपकश्रेणीमें निद्रादिकका उदय नहीं होता इसका उल्लेख पहले ही कर आये हैं, अतः यहाँ (१) चार प्रकृतिक उदय और छह प्रकृतिक सत्त्व तथा (२) चार प्रकृतिक उदय और चार प्रकृतिक सत्त्व ये दो भग होते हैं। इनमेंसे पहला भग क्षीणमोहके उपान्त्य समय तक और दूसरा भग क्षीणमोहके अन्तिम समयमें होता है।
अब सरलता से ज्ञान होनेके लिये इन सव भगोंका कोप्टक देते हैं